परिचय
माता वैष्णो देवी मंदिर त्रिकुटा पहाड़ी में कटरा नामक जगह पर 1700 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह शक्ति को समर्पित एक पवित्र हिन्दू मंदिर है। हिन्दू धर्म में वैष्णो देवी, जिनको “माता रानी” और “वैष्णवी” के रूप में जाना जाता है, ये रूप देवी माँ का अवतार हैं। सुन्दर वादियों में बसे इस मंदिर तक जाने की यात्रा बहुत कठिन है, लेकिन कहते हैं कि “पहाड़ों वाली माता” के एक बुलावे पर उनके लाखों श्रद्धालु आस्था और विश्वास की शक्ति के साथ माता रानी के दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है।

मंदिर की जानकारी
माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू जिले में कटरा नगर के पास स्थित है, जो उत्तरी-भारत के सबसे पूज्यनीय पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। मंदिर 5200 फीट की ऊँचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर बना है, उस पहाड़ी को वैष्णो देवी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की देख-भाल श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है। माता का भक्तों से अटूट प्रेम है, तभी तो कठोर परिश्रम करके पहाड़ों की गोद में बसे माता वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन करने के लिए भक्त जरुर जाते हैं।
नवरात्रों के समय माँ वैष्णो देवी के दर्शन करने का विशेष महत्व है। इन नौ दिनों तक क्या देश क्या विदेश? लाखों श्रद्धालु माँ वैष्णो देवी के दर्शन करने को आते हैं। वैसे कहते भी है कि पहाड़ों वाली माँ वैष्णो देवी सबकी इच्छाएँ पूरी करती हैं। माता के दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है।
माता वैष्णो देवी ज्ञान, धन और बल का सामूहिक रूप हैं, क्योंकि यहाँ आदिशक्ति के तीन रूप हैं – पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी है, दूसरी महालक्ष्मी जो धन-वैभव की देवी है और तीसरी महाकाली या दुर्गा जो शक्ति स्वरूपा मानी जाती हैं। जीवन के धरातल पर भी श्रेष्ठ, सफल और ऊँचाइयों को छूने के लिए विद्या, धन और बल ही जरुरी होता है।
माता की इस यात्रा से भी जीवन के सफर में आने वाली कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करने के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेणा और शक्ति मिलती है। माँ वैष्णो देवी का यह प्रसिद्ध दरबार हिन्दू धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख तीर्थ-स्थल होने के साथ-साथ 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता हैं। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का बध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में “भवन” के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी पिंडी (बाएँ) के रूप में गुफा में विराजित है। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
माता वैष्णो देवी यात्रा का प्रारम्भ
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। कटरा से क्रमशः अर्द्धकुमारी मंदिर और माँ के मुख्य मंदिर तक की दूरी लगभग 8 और 12 किलोमीटर है। माँ की पवित्र गुफा से भैरवनाथ की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है। माता के दर्शन के लिए दिन-रात यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से माता के दर्शन के लिए निशुल्क पर्ची मिलती है। यह पर्ची लेने के बाद आप कटरा से माँ वैष्णो देवी के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। जो लोग कठिन चढ़ाई करने में सक्षम नही हैं उनके के लिए पालकी, पिट्ठू और घोडे किराये पर मिलते हैं।
हवाई सुविधा
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 2200 से 2800 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से ‘साँझीछत’ (भैरवनाथ मंदिर से कुछ कि.मी. की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
माँ वैष्णो देवी की कथा
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध पुरातन प्रथा के अनुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने परम भक्त “पंडित श्रीधर” की भक्ति से संतुष्ट होकर उसकी लाज बचाई और सम्पूर्ण विश्व को अपनी मौजूदगी का प्रमाण दिया। कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गाँव में माँ वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहता था। उसके कोई संतान नही थी, जिसके कारण वह दु:खी रहता था। एक दिन श्रीधर ने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माता वैष्णवी कन्या वेश में उन्हीं के बीच आकर बैठ गयीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई परंतु देवी वैष्णवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘आस-पास के गांवों में सबको अपने घर भण्डारे का निमन्त्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस–पास के गाँवों में भण्डारे का संदेश पहुँचा दिया। वहाँ से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके अन्य शिष्यों को भी भोजन का निमन्त्रण दिया। भोजन का निमन्त्रण पाकर सभी गाँव वासी आश्चर्यचकित थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गाँव वासी भोजन के लिए एकत्रित हो गए। तब कन्या ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।
भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तब भैरवनाथ ने कहा कि मैं तो खीर–पूड़ी की जगह मांस भक्षण और मदिरापान करुंगा। तब कन्या ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किन्तु भैरवनाथ जान-बूझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडऩा चाहा, तब माँ ने उसके छल को जान लिया। माँ वायु रूप में बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली, भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके अनुरोध पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और मुसीबतें दूर हो जाती हैं।
उस समय माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ को चेतावनी दी कि तू जिसे एक साधारण कन्या समझ रहा है वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी हैं। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते–भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकलकर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। परंतु वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई और माता की रक्षा के लिए हनुमान जी ने गुफा के बहार भैरव से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इधर पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे, उन्होंने कई विधियों से ‘पिंडों’ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली, देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं, वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी (बाएँ) पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। इन तीन भव्य पिण्डियों के साथ कुछ श्रद्धालु भक्तों एव जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व नरेशों द्वारा स्थापित मूर्तियाँ एवं यन्त्र इत्यादि है।
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माता से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णवी जानती थीं कि उन पर आक्रमण करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी, उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन करने को तब तक पूर्ण नही माना जायेगा, जब तक कोई भक्त मेरे दर्शन करने के बाद भैरवनाथ के दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |