श्री राम जी का जन्म कब हुआ था (Shree Ram ji ka janm kab hua tha)?

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ने अवतारी पुरुष के रूप में धरती पर जन्म लिया था । पुराणों में यह चर्चा है कि आखिर श्री राम जी का जन्म कब हुआ था । यदि पुराणों के अनुसार माने को श्री राम जी का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हुआ था तथा इस दिन को देश भर में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है । श्री राम जी के जन्मदिवस को लेकर अलग अलग पुराणों में अलग तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं । इस विषय में कई शोध भी किए गए हैं और उनके मुताबिक राम जी का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व 10 जनवरी को सुबह 12:05 पर हुआ था । राम जी एक ऐतिहासिक महापुरुष थे ।

श्री राम जी का जन्म कब हुआ था (Shree Ram ji ka janm kab hua tha)?

श्री राम जी का जन्म –

 श्री राम जी के मंत्रीगण और सेवकों ने अपने महाराज की आज्ञानुसार श्यामवर्ण घोड़े को चतुरंगी सेना रहित छुड़वा लिया था ।श्री राम जी के पिता महाराज दशरथ द्वारा देश देशान्तर से मनस्वी, विद्वान, तपस्वी ॠषि मुनियों और वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितो को बुलवाया गया था और एक यज्ञ सन्तान  प्राप्ति के लिए सम्पन्न कराया गया था । इस यज्ञ में किए गए वेदों के पाठ के स्वर से पूरा माहौल सुगन्धित और समिधा पूर्ण हो गया था । यज्ञ सम्पन्न होने के बाद सभी पण्डितो, ब्राह्मणों  और ॠर्षियो को यथोचित गौ, धन धान्य भेंट आदि देकर सादर विदा करके यज्ञ को सम्पन्न किया गया । यज्ञ सम्पन्न होने के बाद इस यज्ञ का प्रसाद महाराज दशरथ जी ने अपनी तीनों रानियों को दिया और प्रसाद को ग्रहण करने के बाद परमपिता परमेश्वर की कृपा उन पर हुई और उनकी तीनों रानियों ने गर्भधारण किया ।

चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन जब सूर्य, मंगल, शनि और बृहस्पति के साथ शुक्र जब सभी ग्रह अपने अपने स्थान पर थे तथा कर्क लग्न का उदय हुआ और जब महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ । इस परम कान्तिमान, श्यामवर्ण, अद्भुत सौंदर्यशाली और अत्यंत तेजस्वी पुत्र को जिसमें भी देखा वह उसे देखता ही रह गया । इसके पश्चात महाराज दशरथ की दूसरी रानी ने एक पुत्र और तीसरी रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया । राजकुमारों के जन्म के पश्चात तो मानो जैसे पूरे राज्य में आनन्द का माहौल हो गया सभी लोग खुशियां मनाने लगे । राजकुमारों के जन्म के उपलक्ष्य में गंधर्व गान गाए जाने लगे । पुत्रों को आशीर्वाद देने के लिए जितने भी ब्राह्मण और याचक दरबार में आते महाराज ने सभी को दान दक्षिणा प्रदान की । और अपने राज्य के सभी दरबारियों और प्रजाजनो को पुरस्कार और धन धान्य, आभूषण रत्न भेंट किए गए ।

सभी पुत्रों का नामांकन संस्कार महर्षि वशिष्ठ के माध्यम से सम्पन्न कराया गया । उनके नाम है कौशल्या पुत्र का नाम राम, सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न, और कैकयी पुत्र भरत । जैसे जैसे चारों राजकुमार बड़े होते गये इनके साथ साथ इनके गुणों में भी लोकप्रियता आती गई । चारों राजकुमारों में श्री रामचंद्र जी अपने सभी भाइयों के गुणों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे । उनमें अलग तरह की प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरूप वे सभी विषयों में पारंगत हो गए । श्री रामचन्द्र जी को अस्त्र-शस्त्र से लेकर हाथी , घोड़े सभी प्रकार के वाहनों का ज्ञान प्राप्त था । श्री राम जी हमेशा ही अपने माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में रहते थे । और इसमें उनका साथ उनके तीनों भाई भी देते थे । चारों भाइयों में अपने माता-पिता और गुरुजनों के प्रति बहुत ही श्रद्धा थी । तथा चारों में आपस में बहुत ही प्रेम और सौहार्द था । महाराज दशरथ जब भी अपने चारों पुत्रों को देखते उनका मन गर्व और आंन्दित हो उठता था ।

श्री राम जी की मृत्यु कैसे हुई –

एक कथा के अनुसार सीता जी के सति प्रमाणित होने के बाद सीता जी ने अपने दोनों पुत्रों को राम जी की गोद में ले दिया और उसके बाद खुद मां धरती के भूगर्भ में समा गई । सीमा जी के जाने के बाद राम जी बहुत ही व्यथित हो गए और यमराज की आज्ञा पाकर उन्होंने सरयू नदी के गुप्तार घाट पर समाधि ले ली । राम जी के जल समाधि लेने के बाद सरयू नदी से विष्णु जी प्रकट हुए और उन्होंने अपने दर्शन दिए । इस तरह श्री राम जी ने अपना मनुष्य रूप त्याग दिया और विष्णु रूप लेकर वैकुंठ लोग को चले गए ।