सती प्रथा को खत्म किसने किया?
सती प्रथा एक ऐसी प्रथा थी जिसमें यदि पति की मौत हो जाती है तो पति के साथ उसकी विधवा को भी जला दिया जाता था । कई विधवाएं तो इस प्रथा के लिए तैयार रहती थी पर कुछ को इस प्रथा को मानने के लिए मजबूर किया जाता था । और उस समय पति के साथ जलने वाली महिला को ही सती कहा जाता था । जिसका मतलब होता है एक पवित्र महिला ।
मुग़ल काल में रोक –
मुग़ल शासनकाल में सबसे पहले हुमायूं ने इस प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश की थी । उसके बाद ही अकबर ने सती प्रथा पर रोक लगाने का आदेश दिया था । क्योंकि कुछ महिलाएं इस प्रथा को स्वेच्छा से भी मानती थी इसलिए सबको यह आदेश दिया गया कि कोई भी महिला अपने मुख्य अधिकारी विशिष्ट की अनुमति के बिना ऐसा नहीं करें । 18वीं शताब्दी के अन्त में इस प्रथा पर कुछ इलाकों पर रोक लगा दी गई थी । जहां उस समय यूरोपीय औपनिवेशिक शासन हुआ करता था । इसके बाद 21वीं शताब्दी में भी इस प्रथा से जुड़े मामले सामने आए थे जो कि भारत के ग्रामीण इलाकों से थे । आधिकारिक तौर पर 21वीं शताब्दी में 1943 से 1987 तक भारत में सती प्रथा के कुल 30 मामले सामने आए थे ।

राजा राम मोहन राय और एक घटना –
राजा राम मोहन राय जब किसी काम से विदेश गए थे उसी बीच उनके बड़े भाई की मौत हो गई थी । और उनके भाई की मौत के बाद सती प्रथा के चलते उनकी भाभी को जिंदा जला दिया गया था । इस घटना से राजा राम मोहन राय को बहुत दुःख हुआ और तभी से उन्होंने प्रण लिया कि जो उनकी भाभी के साथ हुआ है वैसा वे किसी और महिला के साथ नहीं होने देंगे ।
राजा राम मोहन राय ने अपने प्रयासों से सरकार के द्वारा सती प्रथा को गैर कानूनी और दण्डनीय भी घोषित करवाया था । और उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ निरंतर आंदोलन भी किये है । इस आंदोलन के चलते एक बार तो उनका जीवन में ख़तरे में था पर राजा राम मोहन राय ने बिना खबराये सारी मुश्किलों का सामना किया और सती प्रथा को समाप्त करने में वे सफल रहे । सती प्रथा को मिटाने के बाद राजा राम मोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सबसे पहले व्यक्ति बन गये ।
तथा उस वक्त सती प्रथा के नाम में बंगाल में औरतों जिंदा जला दिया जाता था क्योंकि उस समय बाल विवाह की प्रथा भी थी और इस प्रथा के चलते कहीं कहीं तो 50 साल के व्यक्ति के साथ 12-13 साथ की बच्चियों का विवाह करा दिया जाता था । और फिर अगर उस व्यक्ति की मौत हो जाती थी तो उसकी विधवा को उसकी चिता पर बैठाकर जिंदा जला दिया जाता था । इस प्रकार की कुरीतियों के खिलाफ राजा राम मोहन राय ने अपने ही लोगों से जंग भी लड़ी है । तथा कुछ लोगों ने उनपर ब्रिटिश एजेंट होने तक का आरोप लगाया है लेकिन उन्होंने एक सच्चे योद्धा की तरह सबका सामना किया था।
राजा राम मोहन राय स्वतंत्रता चाहते थे पर वे यह भी चाहते थे कि देश के नागरिक स्वतंत्रता की कीमत भी जानें । राजा राम मोहन राय के पिता एक ब्राह्मण थे, तथा उनकी माता शाक्य परंपरा वाली थी । राजा राम मोहन राय को 15 साल की उम्र में ही बंगाली, संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान हो गया था। तथा वे ज्ञान अर्जित करने हिमालय पर्वत में भी घूमते घूमते तिब्बत भी गए हैं ।
सती प्रथा से जुड़ी कुछ घटनाएं –
1989 में कमल कुमार नाम का एक मजुमदार की जीवन पर आधारित यह कहानी है जिसमें मूक अनाथ लड़की के बारे में बताया गया है । जिसकी शादी एक बरगद के पेड़ से करा दी गई थी क्योंकि उसकी कुण्डली के मुताबिक यदि उसकी शादी बरगद के पेड़ से ना कराई गई तो उसका पति मर जाएगा और वह सती हो जाएगी । और इस कहानी पर फिल्म भी बनाई गई है जिसमें शबाना आजमी और अरूण बनर्जी ने प्रमुख भूमिका निभाई है । और अभी कुछ समय पहले ही इसी सती प्रथा पर एक और फिल्म बनाई गई हैं जिसका नाम पद्मावत था इस फिल्म को संजय लीला भंसाली ने बनाया था । इस फिल्म में जब अलाउद्दीन खिलजी, राजा रावल रत्न की हत्या कर देता है उसके बाद वह पद्मावती के अपहरण के उद्देश्य से उनके महल में प्रवेश करता है तब रानी पद्मावती अपनी बारह सौ दासियों के साथ आग में झुलसकर अपनी जान दे देती है । इस फिल्म में रानी पद्मावती का किरदार दीपिका पादुकोण ने निभाया है ।