आरएसएस की स्थापना कब हुई थी (RSS ki sthapana kab hui thi)
आरएसएस का पूरा नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हैं । पर सभी लोग इसे आरएसएस के नाम से ही जानते हैं । आरएसएस आज की दौर का सबसे बड़ा संघ हैं । आरएसएस संघ की स्थापना 27 सितम्बर सन् 1925 में विजयदशमी के दिन हुई थी। इस संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार थे| जिन्होंने इस संघ की स्थापना नागपुर में की थी । इस संघ की एक रोचक बात भी है कि 27 सितम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना अनौपचारिक तरीके से की गई थी । क्योंकि अगर कोई भी एक संगठन का गठन करने से पहले उसके नियम बनाये जाते हैं जिसे हम संविधान कहते हैं । और उस आफिस या कार्यालय में बाकी चर्चा के साथ पैसों के बारे में भी चर्चा होती है ।
आरएसएस की शुरुआत कैसे हुई –
आरएसएस की शुरुआत बहुत ही सरल तरीके से की गई थी , इसके लिए डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने कुछ खास 15-20 लोगों को अपने घर बुलाया और उनसे चर्चा की और उस दौरान उन्होने बताया कि आज हम एक संघ की शुरुआत करने जा रहे हैं जिसका सिर्फ एक ही मकसद होगा ब्रिटिशराज भारत में हिन्दुओं को संगठित करना । शुरुआत में इस संघ के सभी सदस्यों को सभासद ही कहा जाता था। और सभी सभासदों के लिए एक नियम था कि सभी पर्याप्त व्यायाम करें और स्वास्थ्य रहें । और सप्ताह में एक बार सभी सदस्य एक साथ इकठ्ठे हो ।
इस संस्था के संस्थापक डॉ हेडगेवार को बचपन से ही ब्रिटिश राज पसंद नहीं था । इसलिए वो हमेशा से ही ब्रिटिश राज के नियमों के खिलाफ थे । जब हेडगेवार स्कूल की पढ़ाई ख़त्म करके कालेज की पढ़ाई शुरू करने जा रहे थे उस समय कलकत्ता और भारत को आजाद कराने का आन्दोलन चल रहा था । और इसी आन्दोलन को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कलकत्ता में मेडिकल की पढ़ाई की और परीक्षा को पास किया । और कलकत्ता में उन्होंने कई क्रांतिकारियों से विचार-विमर्श किया और उनसे मिलते रहे । और इसी बीच उन्होंने नागपुर में महाराष्ट्र संघ की शुरुआत की ।
आरएसएस नाम कैसे पड़ा –
स्थापना के 6 महीने बाद 17 अप्रैल 1926 में डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अपने घर पर अपने सभी सहयोगियों की एक बैठक का आयोजन किया । और इस बैठक का आयोजन करने का प्रमुख उद्देश्य इस संघ का नामकरण करना था और संघ की विचारधारा को स्पष्ट करना भी इस संघ का उद्देश्य था । नामकरण के लिए लिए सभी सदस्यों ने अपने – अपने विचार व्यक्त किए और इसके बाद उन्हें तीन नाम सही लगे जिनमें से उनका सही नाम चुनना था वो तीन नाम इस प्रकार है –
* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
* जरपटिका मण्डल
* भारतोद्वारक मण्डल
इसके बाद सभी सदस्यों ने आपस में बहुत विचार – विमर्श किया और उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम को चुना । और इसी के साथ उन्होंने ये भी तय किया कि सभी सभासदों को स्वयंसेवक कहा जाऐगा ।
आरएसएस की कार्य प्रणाली क्या है –
इसकी शुरुआत सुबह 5 बजे होती है जिसमें सभी का सैनिक अभ्यास होता है जिसे संघ में समता कहते हैं । और इस संघ में सप्ताह में दो बार अलग-अलग विषयों पर चर्चा की जाती है । जिसे इस संघ में राजकीय वर्ग कहते हैं ।
लेकिन इसे 1927 में बदलकर बौद्धिक वर्ग कर दिया गया था । बौद्धिक वर्ग का आयोजन या तो कभी किसी डाक्टर के घर होता था या फिर किसी स्वयंसेवक के घर ।
भारत में आरएसएस का योगदान –
- कश्मीरी सीमा की निगरानी और विभाजन पीड़ितों को आश्रय –
आरएसएस संघ के स्वयंसेवक 1947 से कश्मीर की सीमा और पाकिस्तानी सेना की सभी गतिविधियों पर लगातार नजर रखें हुए हैं। और ये काम नेहरू – माउंटबेटन सरकार कर रही है।
- सन् 1962 का युद्ध –
सेना की मदद के लिए देश भर से बहुत से स्वयंसेवकों ने बहुत ही उत्साह से सीमा पर पहुंचकर सेना की मदद की थी। और उनके इस सहयोग को पूरे देश में बहुत सराहा गया था| और आज भी याद रखा गया है ।
- कश्मीरी का विलय –
कश्मीरी महाराज हरि सिंह विलय यह फैसला नहीं कर पा रहे थे कि कबाइलियों के भेस में पाकिस्तानी सेना भारत की सीमा में अचानक घुस गए । तब सरदार पटेल ने गुरू गोलवलकर से सेना की मदद करने की बात की ।
- 1965 में युद्ध में कानून व्यवस्था को सम्भाला –
पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को आरएसएस संघ की मदद ली । इसके बाद आरएसएस संघ ने घायल सैनिकों की मदद की ।
- गोवा का विलय –
नगर हवेली , दादरा और गोवा के भारत विलय में आरएसएस संघ ने निर्णायक भूमिका निभाई थी । 21 जुलाई 1954 को संघ ने दादरा को मुक्त कराया था । 28 जुलाई को नगर हवेली को मुक्त कराया था ।
- आपातकाल –
सन् 1975 से सन् 1977 के बीच आपातकाल के लिए कई संघर्ष किये।
- भारतीय मजदूर संघ –
सन् 1955 में भारतीय मजदूर संघ विश्व का पहला मजदूर आंदोलन था । जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता है ।