रस की परिभाषा और प्रकार
रस क्या है ?
काव्य अथवा गद्य को पढ़ते या सुनते समय जो अनुभूति होती है, अर्थात जो आनंद आता है, उसे रस कहते हैं। रास काव्य की आत्मा है, बिना भाव के उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। जैसे हम रामचरित मानस को सुनते समय उसकी कल्पना में भाव विभोर हो जाते हैं, कृष्ण की बाल लीला का वर्णन सुन अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है, इसी प्रकार किसी उपन्यास को पढ़ने से भी कई प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं।
रस के चार प्रमुख अंग हैं
1- स्थायी भाव
2- विभाव
3- अनुभाव
4- संचारी भाव
1- स्थायी भाव
ये वे भाव होते हैं, जो हमारे मन में स्थायी रूप से रहते हैं, इनमें परिवर्तन नहीं हो पाता। हर रस का एक स्थायी भाव होता है। इन्हें खत्म भी नहीं किया जा सकता। रसों की कुल संख्या 11 है, इसलिए स्थायी भाव भी 11 होते हैं।
2-विभाव
स्थायी भावों के उदबोधक के चलते विभाव को दो भागों में बांटा गया है:
- आलंबन विभाग
- उद्दीपन विभाव
आलंबन विभाव:- जिसके सहारे से स्थायी भाव जाग्रत होते हैं वे आलंबन विभाव कहलाते हैं। जैसे- अभिनेता अभिनेत्री|
आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं।
- आश्रयालंबन
- विषयालंबन
मन में जो भाव जगे वो आश्रयालंबन, और जिसके प्रति या फिर जिसकी वजह से भाव जगे वो विषयालंबन कहलाते हैं।
जैसे:- शिव के मन में पार्वती के प्रति रति भाव जगे तो शिव आश्रय और पार्वती विषय होंगे|
उद्दीपन विभाव:- जिस वस्तु या स्थिति को देख कर स्थायी भाव आए वो उद्दीपन विभाव कहलाता है। जैसे:- जंगल, सरोवर का किनारा, सुंदर नायिका इत्यादि।
3-अनुभाव
मन में उत्पन्न होने वाले भाव के कारण शारीरिक प्रक्रिया को अनुभाव कहते हैं। ये आठ प्रकार की होती है, स्तम्भ, स्वेद, भंग, कंप, विवर्णता, रोमांच, अश्रु, एवं प्रलय।
4-संचारी भाव
मन में कुछ क्षण के लिए आने-जाने वाले भावों को संचारी भाव कहा जाता है। ये स्थायी नहीं होते, और कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं। ये कुल 33 भाव होते हैं- श्रास, लज्जा, ग्लानि, हर्ष, विषाद, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न,स्मृति, मद, उन्माद, अवहितथा , अपस्मार, व्याधि, मरण।
रस के प्रकार
रस कुल 11 प्रकार के होते हैं:
- श्रंगार रस
- हास्य रस
- करुण रस
- वीर रस
- अद्भुत रस
- भयानक रस
- रौद्र रस
- वीभत्स रस
- शांत रस
- वात्सल्य रस
- भक्ति रस
1-श्रृंगार रस : इस रस से आशय उस वस्तु के वर्णन से है, जिसमें सजीव प्रेम झलके। जैसे महिला और पुरुष के प्रेम सम्बन्ध। इसका स्थायी भाव रति होता है।
श्रंगार रस भी दो प्रकार का होता है संयोग और वियोग
उदाहरण:
दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥
रे मन आज परीक्षा तेरी !
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी !
2- हास्य रस: ऐसी कविता या फिर गद्य जिसे पढ़ने से हास्य का भाव उत्पन्न हो, वह हास्य रस कहलाता है। इसका स्थायी भाव हंसी होता है।
उदाहरण:
लट में भुजंगा हंसे। हास ही के दंगा भयो, नंगा के विवाह में।
3- करुण रस:
ऐसी पंक्ति या काव्य जिसे पढ़कर दुःख की अनुभूति हो वहां करुण रस प्रकट होता है। शोक करुण रस का स्थायी भाव है।
उदाहरण:
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
4-वीर रस:
जिस कविता या गद्य को पढ़कर मन में उत्साह और उमंग भर जाए वहां वीर रस की उत्पत्ति होती है। उत्साह वीर रस का स्थायी भाव है।
उदाहरण:
बुंदेलो हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
5-अद्भुत रस:
जिन घटनाओं को सुनकर या देखकर हम आश्चर्यचकित हो जाते हैं, वहां अद्भुत रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव आश्चर्य है।
उदाहरण
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास। हरि मुख में लखि मातु। विकसित दृग पुलकातु॥ राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।
6- भयानक रस:
जब किसी घटना या कुछ ऐसा पढ़कर जिससे मन में भय या डर उत्पन्न हो वहां भयानक रस बन जाता है। इसका स्थायी भाव भय है।
उदाहरण: एक ओर अजगरहि लखी, एक ओर मृगराय. बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए। कुटिल काल के जालों सी। फन फैलाये व्यालों सी।
7-रौद्र रस:
जिस साहित्य को पढ़कर या सुनकर मन में क्रोध उत्पन्न हो, वहां रौद्र रस होता है। इसका स्थायी भाव क्रोध है।
उदाहरण:
सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा।
8-वीभत्स रस:
जिस काव्य या गद्य में घृणात्तम वस्तु अथवा घटना का वर्णन आए वहां वीभत्स रस होता है। इसका स्थायी भाव घृणा होता है।
उदाहरण:
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते
9-शांत रस
जिस काव्य या गद्य को पढ़कर मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न हो, उसे शांत रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव भी निर्वेद होता है।
उदाहरण:
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं, सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं
10- वात्सल्य रस
जिन्हें पढ़कर मन में बाल स्नेह और मोह पैदा हो वहां वात्सल्य रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव स्नेह होता है।
उदाहरण:
जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥ ...
11- भक्ति रस:
जिस काव्य या गद्य में भगवान के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट होता है। वहां भक्ति रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव वैराग्य या अनुराग होता है।
उदाहरण:
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास, एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास
उपरोक्त लेख में आपको रस के सम्बन्ध में काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। यदि आपको किसी और विषय पर भी जानकारी चाहिए तो आप हमें लिख सकते हैं।
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