राम नरेश त्रिपाठी का जन्म कब हुआ था (Ram Naresh Tripathi ka janm kab hua tha)

राम नरेश त्रिपाठी छायावाद के खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि कहे जाते हैं । इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करके इन्होंने खुदसे ही हिन्दी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की थी । राम नरेश त्रिपाठी ने ही उस समय के कवियों के सबसे प्रिय विषय के लिए समाज – सुधार को छोड़कर प्रेम वाली कविता को अपना विषय बनाया ।  राम नरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 ई° में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर क्षेत्र में हुआ था । इनके पिता का नाम राम दत्त था । इनके पिता एक आस्तिक ब्राह्मण थे।

राम नरेश त्रिपाठी के पिता राम दत्त त्रिपाठी ने सेना में सूबेदार के पद पर काम किया और राम नरेश त्रिपाठी ने अपने पिता से ही निर्भीकता , आत्मविश्वास और दृढ़ता जैसे गुण प्राप्त किए थे।

 प्रारंभिक शिक्षा –

राम नरेश त्रिपाठी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के एक प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की । इसके बाद इन्होंने नवमी की पढ़ाई करने के बाद स्वतंत्र अध्ययन किया और इसी के साथ ही इन्होंने देशाटन‌ से बहुत सा ज्ञान प्राप्त किया । और इसके बाद इन्होंने साहित्य  साधना को ही अपने जीवन के लक्ष्य के रूप में चुना । राम नरेश त्रिपाठी ने सिर्फ हिंदी ही नहीं इसी के साथ संस्कृत, अंग्रेजी, गुजराती और बंगला भाषाओं का बहुत सा ज्ञान लिया हैं । राम नरेश त्रिपाठी 18 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता से अनबन होने के कारण अपना घर छोड़ कर कलकत्ता चले गए थे । पर कलकत्ता जाने के कुछ समय बाद ही उन्हें संक्रमण हो गया था जिसके कारण वे कलकत्ता में ज्यादा दिन नही रह पाए ।

बीमार होने के बाद वे जयपुर राज्य के फतेहपुर के सेठ रामवल्लभनेवरिया के यहां रहने के लिए चले गये । और यहां की शुद्ध जलवायु और इलाज पाकर वो जल्दी ही स्वस्थ्य भी हो गए। यहां उन्होंने रामवल्लभनेवरिया के पुत्रों को भी अच्छी तरह से शिक्षा दी ।

राम नरेश त्रिपाठी ने दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा का बहुत प्रचार-प्रसार किया और इसी के साथ बहुत से सराहनीय कार्य भी किए । राम नरेश त्रिपाठी ने हिन्दी साहित्य – सम्मेलन के इतिहास परिषद् के सभापति होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी बनकर देश की सेवा भी की । और देश की सेवा करते हुए सरस्वती के ये पुत्र 16 जनवरी सन् 1962 में स्वर्गवासी हो गए थे ।

राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कृतियां –

* खण्ड काव्य – इन्होंने तीन खण्ड काव्यों की रचना की जो इस प्रकार हैं- पथिक, स्वप्न और मिलन । राम नरेश त्रिपाठी की विषय-वस्तु ऐतिहासिक और पौराणिक थी, इसलिए इनकी रचनाएँ देश प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से भरी हुई रहती थी।‌

* मुक्त काव्य – राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखी गई मानसी उनकी एक काव्य रचना हैं । इस काव्य में इन्होंने ‌मानव – समाज , त्याग , उत्सर्ग और देश-प्रेम का सन्देश दिया है, और इसी के साथ इसमें कई प्रेरणाप्रद कविताएं इसमें शामिल हैं । इस काव्य को हिन्दुस्तान अकादमी के द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है ।

* लोकगीतग्राम्य गीत इनके लोक गीतों का एक संग्रह हैं । और इसमें ग्राम्य – जीवन के बारे में सजीव और प्रभाव पूर्ण गीत है।

इसी के साथ त्रिपाठी जी ने और भी अतिरिक्त कृतियां लिखीं हैं जो इस प्रकार है –

– तरकस

– आंखों देखी

– नखशिख

– स्वप्नों के चित्र

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखित नाटक

– जयन्त

– अजनबी

– प्रेमलोक

– पैसा परमेश्वर

– कन्या का तपोवन

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखित उपन्यास

– मारवाड़ी

– वीरांगना

– लक्ष्मी

– सुभद्रा

– वीरबाला

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखित बाल साहित्य –

– फूलरानी

– बालकथा

– आकाश की बातें

– बुद्वि विनोद

– गुपचुप कहानी

राम नरेश के द्वारा लिखित जीवन – चरित्र

– महात्मा बुद्ध

– अशोक

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखित सम्पादन

– शिवा वाबनी

– कविता कौमुदी

भाषा शैली –

राम नरेश त्रिपाठी जी की भाषा सरल खड़ी बोली और भावानुकूल और प्रवाहमयी हैं । इन्होंने अपनी रचनाओं में ज्यादातर संस्कृत के तत्सम शब्दों और सामासिक भाषा का प्रयोग किया है । इनकी शैली सरल , प्रवाहमयी और स्पष्ट है । और इनकी पद रचना में इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मकता शैली का समामेश किया हैं । इसी के साथ-साथ इन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति चित्रण का भी वर्णन किया है । राम नरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं में छन्द के बन्धन को ज्यादा महत्व नहीं दिया है । क्योंकि इन्होंने अपनी काव्य रचना में प्राचीन और आधुनिक दोनों तरह के छंदों का प्रयोग किया है । राम नरेश त्रिपाठी ने अपनी काव्य रचना में शान्त, करुण और श्रृंगाररस का प्रयोग किया है। और इसी के साथ इन्होंने अपनी काव्य रचना में रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास और उपमा अलंकारों का प्रयोग देखा जा सकता है ।

राम नरेश त्रिपाठी की भाषा  –

राम नरेश त्रिपाठी की भाषा खड़ी बोली है । इन्होंने अपनी रचनाओं में कहीं- कहीं उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है । इनकी भाषा शैली सरस , प्रवाहपूर्ण और स्वाभाविक है । इनकी भाषा शैली में दो रूप देखे जा सकते हैं उपदेशात्मकता और वर्णनात्मक ।

राम नरेश त्रिपाठी का साहित्य में स्थान

राम नरेश त्रिपाठी जी एक मननशील , परिश्रमी और विद्वान् थे । इन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार और साहित्य की सेवा  भावना से प्रेरणा पाकर त्रिपाठी जी ने हिन्दी मंदिर की स्थापना की । इसी के साथ-साथ इन्होंने अपनी कृतियों का खुद ही प्रकाशन भी किया है । ये द्विवेदी युग के ऐसे साहित्यकारों में से एक माने जाते हैं जिन्होंने द्विवेदी मण्डल के प्रभाव से अलग रहकर अपनी मौलिक प्रतिभा को निखारकर उससे साहित्य के क्षेत्र में अलग पहचान बनाई । इन्होंने देश-प्रेम , सेवा , राष्ट्रीयता और त्याग जैसे विषयों पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की थी। राम नरेश त्रिपाठी जी ने राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित जो काव्य रचनाएं हैं वे बहुत ही हृदय स्पर्शी हैं ।

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा कुछ लिखित कविताएं जो उन्होंने राष्ट्रप्रेम के लिए लिखी थी –

* पुष्प विकास –

एक दिन मोहन प्रभात ही पधारें , उन्हें

देख फूल उठे हाथ – पांव उपवन के ।

खोल – खोल द्वार फूल घर से निकल आए ,

देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।।

वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उड़ी ,

पाई न , लजा के रही बाहर भवन के ।

मारे अचरज के खुले थे सो खुली ही रहें ,

तब से मुदें न मुख चकित सुमन के ।।

* प्राकृतिक सौन्दर्य –

नावें और जहाज नदी नद , सागर -तल पर तरते हैं।

पर नभ पर इनसे भी सुंदर जलधर -निकर विचरते हैं ।।

इंद्र-धनुष जो स्वर्ग -सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर हैं ।

जो धरती से नभ तक रचता अद्भुत मार्ग मनोहर हैं।।

मनमाने निर्मित नदियों के पुल से वह अति सुन्दर हैं ।

निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही करता अविवेकी नर हैं ‌।

* मातृभूमि की जय –

ऐ मातृभूमि ! तेरी जय हो सदा विजय हो ।

प्रत्येक भक्त तेरा सुख-शांति-कान्तिमय हो ।।

अज्ञान की निशा में , दुख से भरी दिशा में ।

संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो।।

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।

तेरी प्रसन्नता ही आनंद का विषय हो ।।

वह भक्ति दे कि सुख में तुझको कभी न भूलें ।

वह भक्ति दे किदुख में कायर न हृदय हो ।।

* वह देश कौन सा है –

मन – मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है ।

सुख-स्वर्ग- सा जहां है वह देश कौन-सा है ?

जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है ।

जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है ?

नदियां जहां सुधा की धारा बहा रही हैं ।

सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है?

जिसके बड़े रसीले फल , कंद , नाज , मेवे ।

सब अंग में सजे हैं , वह देश कौन-सा है?

जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे ।

दिन रात हंस रहे हैं वह देश कौन-सा है?

मैदान , गिरि वनों में हरियालियां लहकती।

आंनदमय जहां है वह देश कौन-सा है?

जिसकी अनन्त धन से धरती भरी पड़ी है ।

संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है?

सब से प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी ।

जगदीश का दुलारा वह देश कौन-सा है?

पृथ्वी – निवोसियों को जिसने प्रथम जगाया ।

शिक्षित किया सुधारा वह देश कौन-सा है?

जिसमें हुए अलौकिक तत्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी ।

गौतम , कपिल , पतंजलि , वह देश कौन-सा है?

छोड़ा स्वराज तृणवत आदेश से पिता के ।

वह राम थे जहां पर वह देश कौन-सा है?

निस्वार्थ शुद्ध प्रेमी भाई भले जहां थे ।

लक्ष्मण – भरत सरीखे वह देश कौन-सा है?

देवी पतिव्रता श्री सीता जहां हुईं थी ।

माता पिता जगत का वह देश कौन-सा है?

आदर्श नर जहां पर थे बालब्रह्मचारी।

हनुमान , भीष्म , शंकर वह देश कौन-सा है?

विद्वान , वीर , योगी , गुरु राजनीतिकों के ।

श्रीकृष्ण थे जहां पर वह देश कौन-सा है?

विजयी , बली जहां के बेजोड़ शूरमा थे ।

गुरु द्रोण , भीम अर्जुन वह देश कौन-सा है ?

छत्तीस कोटि भाई सेवक सपूत जिसके

भारत सिवाय दूजा वह देश कौन-सा है?

राम नरेश त्रिपाठी के द्वारा लिखित बाल कविताएं –

* नंदू को जुकाम –

बहुत जुकाम हुआ नंदू को , एक रोज वह इतना छींका ।

इतना छींका , इतना छींका , इतना छींका, इतना छींका।

सब पत्ते गिर गए पेड़ के , धोखा हुआ उन्हें आंधी का ।