पर्यावरण क्या है ?
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है परि + आवरण । पहला परि जिसका अर्थ होता है चारों ओर और दूसरा होता है आवरण जिसका अर्थ होता है घिरा हुआ । इसका पूरा अर्थ होता जो आवरण हमें चारों ओर से घेरे हुए है वह पर्यावरण कहलाता है । जैसे नदियां , पहाड़ , तालाब , मैदान , जीव – जन्तु , पेड़ – पौधों , वन मिट्टी आदि । में सभी हमारे चारों ओर पाए जाने पमुख घटक है । और मानव जीवन इन्हीं घटकों का दैनिक जीवन में उपयोग करता है । तथा पूरा मानव जीवन इन्हीं घटकों पर ही निर्भर होता है ।
पर्यावरण की परिभाषा –
* हर्स, कोकवट्स के अनुसार – पर्यावरण इन बाहरी दशाओं और प्रभावो का योग होता है और प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव भी डालता है ।
* डगलस एवं हालैण्ड के अनुसार – पर्यावरण वह सब है जो कि समस्त वाह्य शक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों का सामूहिक रूप से वर्णन करती है, तथा जो जीवधारियों के जीवन, स्वभाव, व्यवहार तथा, अभिवृद्धि, प्रौढता और विकास पर भी प्रभाव डालती है ।
* J.S.Ros के अनुसार – पर्यावरण या वातावरण वह वाह्य शक्ति होती है जो हमें प्रभावित करती है ।
* शिक्षाशास्त्री टॉमसन के अनुसार – पर्यावरण एक शिक्षक है जो जिसका काम है शिक्षा के प्रति अपने छात्र को अनुकूल बनाना है ।
* विश्व शब्दकोश के अनुसार – पर्यावरण उन सभी दशाओ, प्रभावो और प्रणालियों का योग होता है जो जीवों व उनकी प्रजातियों के विकास जीवन और मृत्यु को प्रभावित करता है ।
* निकोलस के अनुसार – पर्यावरण उन सभी बाहरी दशाओं तथा प्रभावों का योग होता है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन विकास पर प्रभाव डालता है ।
* C.C.park के अनुसार – मनुष्य एक विशेष समय पर जिस सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है वह पर्यावरण या वातावरण कहलाता है ।
पर्यावरण के अंग –
- स्थल मण्डल
जल तल से ऊंचा उठा हुआ भाग स्थल मण्डल कहलाता है । और इसके अंतर्गत धरातल का लगभग 29% भाग ही आता है । इसकी पहली परत भू– पृष्ठ की है और इस परत की गहराई 100 कि.मी . हैं । इस परत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां और शैलै समाई होती है । स्थल मण्डल का धनत्व 2.7 है । इसकी दूसरी परत का नाम उपाचयमण्डल है जिसका औसत धनत्व 3.5 है और इसकी गहराई स्थल मण्डल के नीचे की ओर 200 कि.मी. तक होती है तथा इस मण्डल में सिलिकॉन और मैग्नीशियम की प्रधानता भी होती है । स्थल मण्डल की तीसरी परत का नाम परिणाम मण्डल हैं जो पृथ्वी का केन्द्रीय मण्डल कहलाता है यह एक कठोर धातु का बना होता है और इसमें निकल और लोहे की प्रधानता होती है ।
- जल मण्डल
पृथ्वी का समस्त जलीय भाग ही जल मण्डल कहलाता है । तथा इसके अंतर्गत सागर और महासागर दोनों ही आते हैं । भूपटल के 71% भाग में जल और 29% भाग में जल पाया जाता है । पृथ्वी की सतह का क्षेत्रफल लगभग 51 करोड़ वर्ग मीटर है जिसमें 36 करोड़ वर्ग मीटर पर जल ही होता है ।
- वायु मण्डल
हमारी पृथ्वी के चारों और सैकड़ों किलोमीटर का एक मोटा आवरण है जिसे वायुमंडल कहते हैं । पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायु का यह मोटा घेरा पृथ्वी को जकड़े हुए हैं । धरातल से वायुमंडल की ऊंचाई 800 किलोमीटर मानी जाती है वायु मण्डल में और भी बहुत सी परतें मौजूद होती है ।
पर्यावरण के प्रकार –
पर्यावरण में बाह्य रूप में तीन रूप पाते जाते हैं ।
* भौतिक पर्यावरण
* जैविक पर्यावरण
* मनोसामाजिक पर्यावरण
- भौतिक पर्यावरण
पर्यावरण का सबसे प्रमुख भाग भौतिक पर्यावरण होता है जिसमें वायु , खाद्य , पदार्थ , ध्वनि। ऊष्मा , जल , भूमि , प्रकाश , खनिज पदार्थ , नदी तथा अन्य पदार्थों का समावेश होता है । जिसके सम्पर्क में मनुष्य निरन्तर ही रहता है । और इन सभी घटकों में सम्पर्क में रहने के कारण मनुष्य स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है सामान्य अवस्था में सामंजस्य टूटने की वजह से मनुष्य पर पर्यावरण के दुष्प्रभावों से भी प्रभावित होता है ।
- जैविक पर्यावरण
पर्यावरण में जैविक पर्यावरण एक बहुत बड़ा अवयव होता है, ये जैविक पर्यावरण मनुष्य के चारों ओर ही रहता है जहां तक कि एक मानव के लिए दूसरा मानव भी पर्यावरण का ही एक भाग होता है ।
- मनोसामाजिक पर्यावरण
मनोसामाजिक पर्यावरण मानव के सामाजिक सम्बन्धों से सम्बंधित होता है जिसके अंतर्गत सामाजिक , आध्यात्मिक , धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है । मानव एक सामाजिक प्राणी है तथा उसे समाज के अन्य वर्ग , आस पास के पडौसी समुदाय, जाति, प्रदेश, और राष्ट्र के साथ भी सम्बन्ध बनाते रखना होता है ।
पर्यावरण के तत्व कौन कौन से हैं ?
पर्यावरण के तत्वो को दो समूहों में विभक्त किया गया है । पहला है अजैव तत्व और दूसरा है जैव तत्व । अजैव तत्व के अन्तर्गत जलवायु , जल , मृदा , खनिज , स्थल , चट्टान आदि आते हैं । और जैव तत्वों के अन्तर्गत पौधे जीव जंतु आते हैं ।
1. अजैव तत्व –
* जल स्त्रोत – जैसे सागर, नदी, झील, भूमिगत जल, आदि तत्व आते हैं ।
* जलवायवीय कारक – इनमें सूर्य, तापमान, वर्षा, हवा, प्रकाश एवं ऊर्जा, वायुमंडलीय गैस और आद्रता आदि आते हैं ।
* स्थलजात कारक – इसमें उच्चावच, पर्वत, ढाल और दिशा आते हैं ।
* मृदा – इसके अंतर्गत मृदा -जल, मृदा -वायु, मृदा – रूप, आदि आते हैं ।
* भौगोलिक स्थिति – इसके अंतर्गत मध्यदेशीय, तटीय, और पर्वतीय क्षेत्र आदि आते हैं ।
* खनिज एवं चट्टानें – इसके अंतर्गत धात्विक और अधात्विक खनिज, चट्टानें और खनिज ऊर्जा आदि आते हैं ।
2. जैव तत्व समूह –
इसके अंतर्गत वनस्पति , मानव एवं सूक्ष्म जीव , और जीव जंतु आते हैं । पर्यावरण के जैव और अजैव तत्व समूह अपनी अपनी विशेषताओं के मुताबिक ही पर्यावरण का निर्माण करते हैं । क्योंकि इन दोनों के बीच एक प्रकार का सामंजस्य स्थापित होता है जिसकी वजह से इनमें होने वाले परिवर्तनों का एक व्यापक प्रभाव पड़ता है ।
पर्यावरण का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
पर्यावरण मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है जिसके बिना मानव एक पल भी नहीं रह सकता है । हरे भरे पेड़ पौधों मानव जीवन का एक अभिन्न अंग होते हैं और प्रकृति के बिना तो मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । मानव जीवन पांच तत्वों पर ही आधारित होता है जैसे जल , थल, अग्नि, वायु और आकाश । मानव जीवन शुरू भी इन्हीं पांच तत्वों में होता है और खत्म भी इन्हीं पांच तत्वों में होता है । प्राचीन समय में मानव ने अपने चारों ओर को सहेजकर रखा था तथा मनुष्य का जीवन बहुत ही सीधा सादा हुआ करता था । मानव पूरी लगन के साथ हर काम करता था तथा अपने आस पास के पेड़ पौधों का भी अच्छे से ध्यान रखना था । इसलिए उसके आस पास का वातावरण भी साफ और शुद्ध रहता था । पर धीरे धीरे मानव के जीवन में परिवर्तन आते गए । मानव के रहने के तरीकों में भी परिवर्तन आया । मनुष्य ने अपने जीवन को बेहतर बनाने के नई नई खोजें की और न जाने कितनी ही उपलब्धियां भी प्राप्त की । और जैसे जैसे मानव की उपलब्धियां बढ़ती गई उसकी जरूरतें भी बढ़ती गई । अब बड़ी बड़ी इमारतें , बड़ी बड़ी फैक्ट्रीयो के बनने का बिल सिला भी बढ़ने लगा । धीरे धीरे मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने लगा तथा प्रकृति को नुक्सान भी पहुंचाने लगा । मनुष्य को ये पता नहीं था कि वह जिस प्रकार प्रकृति की सौंदर्यता को नुक्सान पहुंचा रहा है उससे आगे चलकर मानव को ही की घातक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा ।
बड़ी बड़ी फैक्ट्रीयो से निकलने वाले धुंए और जलाशयों में रासायनिक तत्वों की वजह से प्रदूषण फैलता जा रहा है । तथा विशैली गैसे वायु को प्रदूषित कर रही है । इसी प्रकार से यातायात के साधनों की वजह से भी बहुत प्रदूषण फैल रहा है और असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है । बड़े बड़े शहरों में घरों में, आफिसों में कारों में हर जगह आजकल Air conditioner का उपयोग किया जाता है जिससे वजह से बाहर का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है । मनुष्य जिस प्रकार से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है उसे गंभीर रूप से विचार करने की जरूरत है क्योंकि प्रकृतिक संतुलन का बनाए रखना बहुत आवश्यक है और ये जागरूकता लाना भी आवश्यक है कि जहां भी संभव हो अपने आस पास पेड़ पौधों को लगाते रहे । और अपने बच्चों को भी यही सिखाते । जिस प्रकार बच्चों का जन्म दिन होने पर पार्टी करते हैं और पैसे खर्च करते हैं कभी कुछ नया करने की कोशिश करने और अपने बच्चों के जन्म दिवस पर एक एक पेड़ लगाए और बच्चों को अपनी प्रकृति की महत्ता को समझाये ।
पर्यावरण के घटक कौन कौन से हैं –
पर्यावरण अनेक तत्वों का एक समूह होता है जिसमें हर एक तत्व का अपना ही महत्व है । सामान्य स्तर पर पर्यावरण के दो घटक होते हैं ।
* जैविक घटक
* अजैविक घटक
1. जैविक घटक
पर्यावरण के जैविक घटकों में पौधे मानव , जीव जंतु , परजीवी , और सूक्ष्मजीव आते हैं । ये सभी जैविकीय घटक अजैविक पृष्ठभूमि में परस्पर क्रिया करते हैं । और इनके अंतर्गत प्राथमिक उत्पादक और उपभोक्ता परपोषी आते हैं ।
2. अजैविक घटक
पर्यावरण के अजैविक घटकों के अंतर्गत प्रकाश , तापमान , आद्रता एवं जल , वर्षण , ऊंचाई , उच्चावच , अक्षांश आदि शामिल हैं l
पर्यावरण संकट और विपत्तियां –
पर्यावरण प्रकृति की एक मूलभूत प्रक्रिया होती है । यह ऐसे प्रकृतिक परिवर्तन अचानक ही आते हैं । हम ऐसे परिवर्तनों को प्राकृतिक पर्यावरण या पर्यावरणीय संकट के तौर पर भी माने जाते हैं, प्राकृतिक पर्यावरण में वे परिस्थितियां है जिनमें लोगों की सम्पत्ति और लोगों को नष्ट करने की क्षमता रखता है
* भूकंप
* ज्वालामुखी
* सुनामी
* चक्रवात ।