निधिवन भगवान श्री कृष्ण के प्रसिद्ध लीला स्थलों में से एक है। यह धार्मिक नगरी मथुरा में वृन्दावन के मशहूर पर्यटन स्थलों में से है। श्री राधारानी की आठ सखियों में मुख्य ललिता सखी के रूप में रसिका संत संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराज की यह कार्य सिद्ध भूमि है। वृन्दावन में स्थित निधिवन एक ऐसा स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ भगवान श्री कृष्ण गोपियों के साथ मिलकर रोजाना रात को रास रचाते हैं। सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती होने के बाद बंद कर दिया जाता है। निधिवन के अन्दर दिन में रहने वाले पशु-पक्षी भी संध्या होते ही वहाँ से चले जाते हैं।
पौराणिक कथा
ऐसा कहा जाता है कि निधिवन में रात के समय भगवान श्री कृष्ण गोपियों के संग में रास रचाते हैं। इसी कारण गेट बंद होने से पहले सभी लोग वहाँ से चले जाते हैं। यदि कोई भी छुपकर रासलीला देखने की कोशिश करता है तो वह पागल हो जाता है। कुछ सालों पहले एक भक्त रात को छुपकर निधिवन में बैठ गया और रासलीला देखने लगा। सुबह निधिवन के गेट खुले तो वह बेहोश अवस्था में मिला, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था। यहाँ के लोग इस प्रकार के अनेकों किस्से बताते हैं। ऐसे ही एक और व्यक्ति थे पागल बाबा, जिनकी समाधि निधिवन में बनी हुई है। उनके बारे में भी कहा जाता है कि वे एक बार भगवान श्री कृष्ण की रास लीला देखने लगे, जिसके कारण वे पागल हो गये। पागल बाबा भगवान श्री कृष्ण के एकमात्र भक्त थे, इसलिए उनकी मृत्यु होने के बाद मंदिर कमेटी ने निधिवन में ही उनकी समाधि बनवा दी।
रंगमहल में सजती है सेज
रंगमहल निधिवन के अन्दर है, जिसके बारे में मान्यता है कि हर रोज रात यहाँ भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी आते हैं। रंगमहल में श्री कृष्ण और राधा जी के लिए चन्दन की पलंग को शाम होने से पहले फूल-मालाओं से सजा दिया जाता है। पलंग के बराबर में एक जग पानी, दातुन और राधा जी के श्रृंगार की वस्तु रख दी जाती हैं। जब सुबह 5 बजे रंगमहल के पट खुलते हैं तो पलंग का बिस्तर इधर-उधर, जग में भरा पानी खाली, दातुन चबी हुई और पान खाया हुआ मिलता है। भक्त रंगमहल में केवल श्रृंगार की वस्तु ही चढ़ाते हैं और भक्तों को प्रसाद के रूप में श्रृंगार की वस्तु ही मिलती है।
निधिवन की जानकारियाँ
निधिवन के पेड़ भी बड़े अजीब हैं। निधिवन में लगे पेड़ों की शाखाएं नीचे की तरफ बढ़ती हैं। जबकि निधिवन से बाहर के पेड़ों की शाखाएं ऊपर की तरफ बढ़ती हैं। निधिवन में लगे पेड़ों के नीचे से रास्ता बनाने के लिए पेड़ों की शाखाओं को डंडों के सहारे रोका गया है।
निधिवन में एक और खासियत यह है कि यहाँ लगे सभी तुलसी का पेड़ जोड़े में हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं, तब वन में जोड़ेदार तुलसी के पेड़ भी गोपियाँ बन जाते हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर से तुलसी के पेड़ में बदल जाते हैं। निधिवन में लगे तुलसी के पेड़ो से कोई भी व्यक्ति तुलसी की पत्ती या लकड़ी तोड़कर नहीं ले जा सकता। ऐसा बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति तुलसी ले गया है, वो किसी न किसी दुर्घटना का शिकार हुआ है।
निधिवन में राधा कृष्ण का मंदिर है। इस मंदिर में कृष्ण की सबसे प्रिय गोपी ललिता हैं, राधा के साथ में ललिता की मूर्ति लगी हुई है।
निधिवन में विशाखा कुण्ड
निधिवन में स्थित विशाखा कुण्ड के बारे में बताया जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण सखियों के साथ रास रचा रहे थे, तभी एक सखी विशाखा को प्यास लगने लगी, उसे कहीं पानी नहीं मिला तो श्री कृष्ण ने अपनी वंशी से इस कुण्ड की खुदाई कर दी, कुण्ड से निकले पानी को पीकर विशाखा सखी ने अपनी प्यास बुझाई। इस कुण्ड का नाम तभी से विशाखा कुण्ड पड़ गया।
श्री बांके बिहारी जी प्रकट स्थल
संगीत सम्राट एवं ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास जी महाराज ने अपने स्वरचित पदों का वीणा के माध्यम से मधुर गायन करते थे। स्वामी जी इस प्रकार तन्मय हो जाते थे कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती थी। स्वामी हरिदास जी के भक्ति संगीत से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें एक दिन स्वप्न दिया और बताया कि मैं तो तुम्हारी साधना स्थली में ही विशाखा कुण्ड के समीप जमीन में छिपा हुआ हूँ। स्वप्न के आधार पर स्वामी हरिदास जी ने अपने शिष्यों की सहायता से बिहारी जी को वहाँ से निकलवाया और उनकी पूजा करने लगे। बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल आज भी उसी जगह पर बना हुआ है, जहाँ हर साल का प्राकट्य समारोह बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। कालांतर में ठा. श्री बांकेबिहारी जी महाराज के नये मंदिर की स्थापना की गयी और प्रकट मूर्ति को वहाँ स्थापित करके आज भी पूजा-अर्चना की जाती है, जो आज बांकेबिहारी मंदिर के नाम से विख्यात है।
स्वामी हरिदास की समाधि
संगीत स्वामी हरिदास जी महाराज की समाधि निधिवन परिसर में है। स्वामी हरिदास जी बांकेबिहारी जी के लिए अपने स्वरचित पदों के द्वारा वीणा पर मधुर गायन करते थे। गायन करते समय ऐसे तन्मय हो जाते कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती। प्रसिद्ध बैजू बावरा और तानसेन इन्हीं के शिष्य थे। अपने सभा रत्न तानसेन के मुख से स्वामी हरिदास जी की प्रशंसा सुनकर सम्राट अकबर इनकी संगीत कला का रसास्वादन करना चाहते थे, किन्तु स्वामी जी का यह दृढ़ निश्चय था कि अपने बांके बिहारी जी सिवाय और किसी का मनोरंजन नहीं करेंगे। एक बार सम्राट अकबर वेश बदलकर साधारण व्यक्ति की भांति तानसेन के साथ निधिवन में स्वामी हरिदास जी की कुटिया में उपस्थित हुए। तानसेन ने जानबूझकर अपनी वीणा लेकर एक मधुर पद का गायन किया, अकबर तानसेन का गायन सुनकर प्रसन्न हो गए। इतने में स्वामी हरिदास जी तानसेन के हाथ से वीणा लेकर खुद उस पद का गायन करते हुए तानसेन की त्रुटियों को बताने लगे। उनका गायन इतना मधुर और आकर्षक था कि वन के पशु-पक्षी भी वहाँ उपस्थिति होकर मौन भाव से श्रवण करने लगे, सम्राट अकबर के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |