मिल्खा सिंह का जीवन परिचय
‘द फ्लाइंग सिंह’ इस नाम को सुनते ही हम सब के दिमाग में बस एक ही नाम आता है ‘मिल्खा सिंह’| कहा जाता है कि मिल्खा सिंह भागते नहीं उड़ते थे जिन्हें पकड़ना बहुत मुश्किल था| मिल्खा सिंह एक एक भारतीय पूर्व ट्रैक और फील्ड स्प्रिंटर है| मिल्खा सिंह भारतीय सेना में कार्यरत थे और देश की सेवा कर रहे थे और इसी दौरान मिल्खा सिंह की रुची खेल की तरफ हुई और मिल्खा सिंह खेल के पेशे में आ गए थे|
मिल्खा सिंह को सेवानिवृत्त (retire) हुए दशकों हो चुके हैं, लेकिन आज तक बहुत कम भारतीय स्प्रिंटर्स उनके कैलिबर से मेल खाते हैं, जिन्हें मिल्खा सिंह ने पीछे छोड़ दिया था। मिल्खा सिंह आज देश में एक स्पोर्टिंग आइकन बन गए हैं।
मिल्खा सिंह का जन्म शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929, गोविंदपुरा में हुआ था जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा है| मिल्खा सिंह का जन्म पंजाबी राठौर घर में हुआ था| मिल्खा सिंह बचपन में ही अनाथ हो गए थे| भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक़्त उनके माता-पिता, एक भाई और दो बहनों की हिंसा में मृत्यु हो गई थी| मिल्खा सिंह ने इन हत्याओं को देखा था| मिल्खा सिंह 15 भाई-बहनों में से एक थे, जिनमें से आठ की भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले निधन हो गया था| मिल्खा सिंह विभाजन के दौरान भाग कर भारत आ गए थे| मिल्खा सिंह बहुत शिक्षित नहीं हैं| मिल्खा सिंह की स्कूली पढ़ाई पाकिस्तान के एक गांव के स्कूल में हुई थी| इस वक़्त मिल्खा सिंह के साथ उनके दो भाई ज़िंदा हैं जिनके नाम है ईश्वर सिंह और मलखान सिंह| मिल्खा सिंह ने बचपन में बहुत संघर्ष किया है| मिल्खा सिंह अपना पेट पालने को सड़क किनारे ढाबों में बर्तन धोया करते थे| कहते है की उनके बड़े भाई मलखान सिंह ने मिल्खा सिंह को आर्मी में भर्ती होने को कहा था जिसके कारण उनका ये सफर शुरू हो सका था| लेकिन उस समय भारतीय सेना में भर्ती होना इतना आसान नहीं था| मिल्खा सिंह तीन से चार बार भारतीय सेना द्वारा अस्वीकार दिए गए थे|
लेकिन मिल्खा सिंह हार न मानने वालों में से थे और साल 1951 में उनको सफलता मिल गई| मिल्खा सिंह और दौड़ने का सफर तब शुरू हुआ था जब मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने के लिए क्रॉस कंट्री रेस कर रहे थे| सेना भर्ती दौड़ में मिल्खा सिंह छटवे स्थान पर आये थे जिसके बाद मिल्खा सिंह को उनके खेल को देखते हुए सेना में चुन लिया गया था| मिल्खा सिंह ने भारतीय सेना में रहते हुए बहुत सी दौडें दौड़ी और कई पदक अपने नाम करे थे| साल 1958 में मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों प्रतियोगिताओं में भाग लिया था| मिल्खा सिंह ने कॉमन वेल्थ और ओलंपिकः जैसी प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया और जीत हासिल किया | मिल्खा सिंह को लोग उस समय साधु भी बुलाया करते थे क्योंकि उस वक़्त सिखों की आबादी काफी कम हुआ करती थी और मिल्खा सिंह के बड़े बाल और दाढ़ी किसी साधू जैसी ही थी| मिल्खा सिंह को कम समय में ही लोगो के बीच अंतरराष्ट्रीय धावक (sprinter) के रूप में जाना जाने लगा था|
मिल्खा सिंह की दौड़ें और उनकी उपलब्धियां
मिल्खा सिंह ने कुल अस्सी दौड़ें दौड़ी जिनमें से उन्होंने सतहतर (77) दौड़ों में जीत हासिल किया था| मिल्खा सिंह ने अपने जीवन काल में बहुत सी दौड़ेँ दौड़ी जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- मिल्खा सिंह ने साल 1958 में एशियाई गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर रेस में स्वर्ण पदक जीता था|
- साल 1958 में मिल्खा सिंह ने कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ गेम्स में एक बार फिर स्वर्ण पदक जीता जिसके बाद मिल्खा सिंह स्वतंत्र भारत के पहले कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट होने का भी खिताब अपने नाम किया था|
- मिल्खा सिंह को 1958 के एशियाई खेलों में उनकी सफलताओं को देखते हुए मिल्खा सिंह को सिपाही के पद से जूनियर कमीशन अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया था और बाद में वह पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक बने, जिस पद से वह 1998 तक सेवानिवृत्त हुए थे।
- साल 1960 में मिल्खा सिंह की एक रेस ने उनका दिल पर वार किया था जिसे सोच आज भी मिल्खा सिंह दुखी हो जाते हैं| 1960 में मिल्खा सिंह ने रोम ओलंपिक में भाग लिया था जिनमें सभी को उम्मीद थी कि मिल्खा सिंह को जीत ही मिलेगी क्योंकि मिल्खा सिंह क्वाटर और सेमी फाइनल में दूसरे स्थान पर आये थे| रोम ओलंपिक की 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह ने हिस्सा लिया जिसमें पहले स्थान पर अमेरिका के ओटिस डेविस आये थे और मिल्खा सिंह को चौथा स्थान प्राप्त हुआ था| मिल्खा सिंह का मानना है की उनकी एक आदत ने उनसे उनका पदक छीन लिया और वो आदत यह थी कि मिल्खा सिंह अपनी रेस के दौरान पीछे भागते हुए प्रतियोगिता को जरूर देखते थे जिसके कारण वर्ष उन्होंने इस रेस में हार का सामना करना पड़ा था|
- मिल्खा सिंह ने अपनी एक दौड़ पाकिस्तान में भी की थी जिसे पहले तो मिल्खा सिंह ने मना कर दिया था लेकिन बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा समझाए जाने के बाद मिल्खा सिंह मान गए और उन्होंने उस दौड़ में पाकिस्तान के सबसे अच्छे धावक अब्दुल ख़ालिद को 200 मीटर की रेस में हरा दिया था| इसी रेस के बाद मिल्खा सिंह को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान ने मिल्खा सिंह को कहा था की आज मिल्खा तुम दौड़े नहीं बल्कि उडे हो और उन्होंने ही मिल्खा सिंह को द फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजा था और तबसे मिल्खा सिंह को इस नाम से भी जाने जाना लगा था|
- मिल्खा सिंह को भारत के पद्म श्री और खेल रत्न जैसे पदकों से भी सम्मानित किया गया है|
मिल्खा सिंह ने अर्जुन अवार्ड लेने से मना कर दिया था क्योंकि मिल्खा सिंह का कहना था कि ये अवार्ड आज के खिलाड़ियों को देना चाहिए जिससे उनका मनोबल और मजबूत हो और वो देश का नाम रोशन करें|
मिल्खा सिंह ने अपनी ऑटोबायोग्राफी भी लिखी है जिसका नाम है ‘द रेस ऑफ़ माय लाइफ’ और मिल्खा सिंह पर एक बायोपिक फिल्म भी बनाई गई थी जिसका नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ था जिसमें फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह की भूमिका निभाई थी|
मिल्खा सिंह का वैवाहिक जीवन
मिल्खा सिंह ने साल 1962 में निर्मल कौर से विवाह किया था जो की भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान थी| मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की दो संतानें हैं जिनमें से एक बेटा जीव मिल्खा सिंह और बेटी सोनिआ सांवल्का हैं|