केदारनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। हिमालय पर्वत की गोद में बसा यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिगों में सम्मलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु होने के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर मास के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने करवाया था तथा इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने कराया था। यहाँ स्थित स्वंयभू शिवलिंग अति प्राचीन है। 16 जून सन. 2013 के दौरान उत्तराखण्ड में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर की दीवारें गिर गई और बाढ़ में बह गयी। इस ऐतिहासिक मंदिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहा, लेकिन मंदिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो गया।
निर्माण
मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। यह मंदिर 6 फुट ऊँचे एक चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर के मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों तरफ परिक्रमा मार्ग है। बाहर प्रांगण में नंदी विराजमान हैं।
इतिहास
इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन 1000 वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह मंदिर 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा था, लेकिन फिर भी इस मंदिर को कोई भी हानि नहीं हुई। सन. 1076 से सन. 1099 तक शासन करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को बनवाया था। लेकिन कुछ लोगों के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था।
सन. 1882 के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था, जिसके दोनों तरफ पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के समक्ष तीर्थयात्रियों के रुकने के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पुजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं।
मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी का लेप किया जाता है। उसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती की जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं और शाम के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विभिन्न प्रकार के चित्ताकर्षक तरीके से सजाया जाता है। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।
केदारनाथ की कथा
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में है। हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव निवास के लिए वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित हैं।
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसलिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शिव के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहाँ पर नहीं मिले। पांडव लोग शिवजी को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहाँ से अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार भी पहुंच गए। भगवान शिव ने तब एक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शिवजी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति व दृढ संकल्प को देखकर प्रसन्न हो गए।
भगवान शिवजी ने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहाँ पर पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
दर्शन का समय
केदारनाथ मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर को 3 बजे तक खुलता है और शाम को 5 बजे पुनः खुलता है और रात्रि को 8:30 बजे बंद हो जाता है। शीतकालीन समय में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। इसलिए यह मंदिर सामान्यत: नवंबर माह की 15 तारीख से पूर्व बंद हो जाता है और 6 माह पश्चात 14 अप्रैल के बाद खुलता है। ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को “उखीमठ” में लाया जाता है।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |