परिचय
काशी विश्वनाथ मंदिर प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है। काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में स्थित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर बना हुआ है। काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के प्रमुख देवता विश्वनाथ और विश्वेश्वरा के नाम से जाने जाते हैं, जिसका अर्थ ब्रह्माण्ड के शासक से होता है। वाराणसी शहर को काशी के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए यह मंदिर भारत में काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ वाम रूप में स्थापित विश्वनाथ शक्ति की देवी माँ भगवती के साथ विराजते हैं, यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे बड़े महापुरुष दर्शन करने आ चुके हैं।

मंदिर के वर्तमान आकार को इंदौर की मराठा शासक अहिल्याबाई होलकर ने सन. 1780 में बनवाया था। मंदिर का शिखर सोने का है, जिसे महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा बनवाया गया था। हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ मंदिर का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है।
मंदिर की संरचना
मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है, जिसे विश्वनाथ गली के नाम से जाना जाता है। ये गंगा नदी के किनारे स्थित है। विश्वनाथ मंदिर के अन्दर एक मंडप व गर्भगृह उपस्थित है। गर्भगृह के अन्दर चाँदी से मढ़ा भगवान विश्वनाथ का 60 सेंटीमीटर ऊँचा शिवलिंग उपस्थित है। यह शिवलिंग काले पत्थर से बना हुआ है। विश्वनाथ मंदिर का एक चौकोर आँगन है, जिसके चारों ओर भगवानों के मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों में कालभैरव, अविमुख्तेश्वर, विष्णु, गणेश, सनीश्वर, विरूपाक्ष और विरूपाक्ष गौरी हैं। मंदिर के अन्दर एक कुआँ स्थित है, जो “ज्ञानवापी” कुआँ के नाम से जाना जाता है। ज्ञानवापी कुआ मंदिर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है।
मंदिर की संरचना को तीन भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में भगवान शिव व विश्वनाथ का शिखर है, दूसरे भाग में सुनहरा गुंबद है और तीसरे भाग में विश्वनाथ के शीर्ष पर स्थित सुनहरा शिखर है, जिसके उपर एक त्रिशूल व ध्वज है। मंदिर में कुल तीन गुंबद हैं, जिन्हें पूर्ण रूप से सोने से बनाया गया है।
पौराणिक कथा
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग के सम्बंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्राचीन कथा के अनुसार जब भगवान शिव पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत पर रहने लगे, तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। पार्वती ने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिय की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहे। काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग भगवान शिव का निवास स्थान बन गया।
माना यह भी जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नही हुए, बल्कि यहाँ पर स्वंय निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।
महिमा और मुख्य मंदिर
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहाँ प्राणत्याग करने से मुक्ति मिलती है। भगवान भोलेनाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मन्त्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनो के लिए काशीपुरी ही एकमात्र गति का स्थान है। विश्वेश्वर के काशी में पांच प्रमुख तीर्थ हैं –
- दशाश्वेमघ
- लोलार्ककुण्ड
- बिंदुमाधव
- केशव
- मणिकर्णिका
यह पांच प्रमुख तीर्थ स्थल हैं जिसके कारण इसे “अविमुक्त क्षेत्र” कहा जाता है। काशी के उत्तर में ओंकारखण्ड, दक्षिण में केदारखण्ड मध्य में विश्वेश्वरखण्ड में ही बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध हैं।
श्री काशी विश्वनाथजी के मंदिर में पाँच आरतियाँ होती हैं:
- मंगला आरती: 3.00 – 4.00 (सुबह)
- भोग आरती : 11.15 से 12.20 (दिन)
- संध्या आरती : 7.00 से 8.15 (शाम में)
- श्रृंगार आरती : 9.00 से 10.15 (रात्रि)
- शयन आरती : 10.30 से 11.00 (रात्रि)
सुरक्षा के द्रष्टिकोण से मंदिर में मोबाइल फ़ोन, कैमरा, बेल्ट और किसी भी इलेक्ट्रोनिक धातु की सामग्री के साथ प्रवेश करना मना है।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में काशी खण्ड के नाम से किया गया है। वास्तविक विश्वनाथ मंदिर को सन. 1194 में कुतबुउद्दीन ऐबक ने ध्वस्त किया था, जब उसने मोहम्मद गौरी का कमांडर रहते हुए कन्नौज के राजा को पराजित किया था। इसके बाद गुजराती व्यापारी ने दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश (1211-1266) के शासनकाल में इसका पुनर्निर्माण करवाया था, लेकिन फिर दोबारा हुसैन शाह शर्की (1447-1458) और सिकंदर लोधी (1489-1517) के शासनकाल में इसे ध्वस्त किया गया।
इसके बाद अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने पुनः मंदिर का निर्माण करवाया, लेकिन अकबर के हिन्दुओं का विरोध करने की वजह से उन्होंने मुग़ल परिवार में शादी करनी पड़ी थी। इसके बाद सन. 1585 में राजा टोडरमल ने अकबर से पैसे लेकर इसके वास्तविक रूप में पुनः इसका निर्माण करवाया था।
सन. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था और इस जगह पर उसने ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई। तत्कालीन मंदिर में आज भी मस्जिद की नींव के अवशेष दिखाई देते हैं, जिनमें स्तम्भ और मस्जिद के पीछे का भाग सम्मलित है।
सन. 1742 में मराठा शासक मल्हार राव होलकर ने मस्जिद को गिराने की योजना बनाई और उसी जगह पर पुनः विश्वेश्वर मंदिर को स्थापित करने की ठान ली। जबकि उनकी यह योजना पूरी तरह से सफल नही हो सकी क्योंकि बीच में ही लखनऊ के नवाब ने इसमें हस्तक्षेप कर दिया था, जो उस समय उस क्षेत्र का नियंत्रण करता था। सन. 1750 के लगभग जयपुर के महाराज ने मंदिर के आस-पास की जगह का सर्वेक्षण किया और उस समय पर पुनः मंदिर बनवाने के इरादे से पूरी जमीन खरीद ली थी, लेकिन अंत में उनकी यह योजना पूरी तरह से सफल नही हो पायी थी।
इसके बाद सन. 1780 में मल्हार होल्कर की पुत्रबधु अहिल्याबाई होल्कर ने सफलतापूर्वक मस्जिद को हटवाकर वहाँ पुराने विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद सन. 1841 में नागपुर के भोसलो ने मंदिर के लिए चाँदी का दान दिया। सन. 1859 में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के गुंबद के निर्माण के लिए 1 टन सोना दान में दिया था।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |