परिचय

कैला देवी का मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। कैला देवी “माँ दुर्गा” का अवतार हैं। कैला देवी करौली के प्रसिद्ध व प्राचीन शक्तिपीठ में विराजित हैं। यह मंदिर पहाड़ियों में बनास नदी की एक सहायक नदी कालीसिल नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सन. 1600 में राजा भोमपाल ने करवाया था। एक मान्यता के अनुसार मंदिर में जिस देवी की पूजा की जाती है, वह कोई और नहीं बल्कि वही कन्या है, जिसकी कंस हत्या करना चाहता था। कैला देवी मंदिर में चाँदी की चौकी पर सोने की छतरियों के नीचे दो मूर्ति स्थापित हैं। इसमें बायीं तरफ माता कैला देवी हैं, जिनका चेहरा कुछ तिरछा है और दायीं तरफ चामुंडा माता की मूर्ति विराजित है। माँ कैला देवी के इस मन्दिर में वेश बदलकर डकैत आते हैं और माँ कैला देवी की आराधना करते हैं।

कैला देवी मंदिर | Kaila Devi Mandir | Kaila Devi Temple in Hindi

निर्माण कार्य

कैला देवी मंदिर का निर्माण सन. 1600 में राजा भोमपाल के द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर कैला देवी को समर्पित है। मंदिर में चाँदी की चौकी पर स्वर्ण छत्तरी के नीचे दो प्रतिमा स्थापित हैं। इनमें बायीं ओर कैला देवी की प्रतिमा विराजमान है, उनका चेहरा कुछ तिरछा है, माँ कैला देवी की आठ भुजाएं हैं। दायीं ओर माता चामुंडा देवी की प्रतिमा विराजमान है।

यहाँ क्षेत्रीय लंगुरिया के गीत गाये जाते हैं। मान्यता है कि माता के दरबार में मन से जो भी मन्नत मांगी जाती है, उसे माँ कैला देवी निश्चय ही पूर्ण करती हैं। जब भक्तों की मन्नत पूर्ण हो जाती है, तब भक्त अपने परिवार के साथ माँ की जात करने बड़ी संख्या में कैला देवी पहुँचते हैं। लंगुरिया को माँ कैला देवी का अनन्य भक्त बताया जाता है। लंगुरिया का मंदिर माँ कैला देवी की प्रतिमा के ठीक सामने विराजमान है। मंदिर के परिसर में एक छोटा मंदिर है, जिसे भैरों को समर्पित किया गया है। यह मंदिर परिसर के आँगन में स्थित है, जिसका मुख लंगुरिया मंदिर के ठीक सामने है। श्रद्धालु महिलायें कालीसिल नदी में स्नान कर खुले केशों से मंदिर पहुचती हैं और माँ कैला देवी के दर्शन करने के पश्चात वहाँ पर कन्या, लंगुरिया को भोजन प्रसाद खिलाकर पुण्य लाभ अर्जित करती हैं।

इतिहास

उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ में से एक कैला देवी मंदिर माता के भक्तों के लिए पूजनीय है। यहाँ आने वाले भक्तों को सांसारिक भागम-भाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने सन. 1600 में करवाया था। कैला देवी मंदिर की अनेक कथाएं प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी और माता देवकी जी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का कंस वध करना चाहता था, वही योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है।

एक अन्य कथा के अनुसार पुरातन काल में त्रिकूट पर्वत के आसपास का इलाका घने जंगल से घिरा हुआ था। इस इलाके में नरकासुर नामक राक्षस रहता था। नरकासुर ने आसपास के इलाके में काफ़ी आतंक मचा रखा था। उसके अत्याचारों से परेशान लोगों ने माँ दुर्गा से प्रार्थना की। भक्तों की करुण पुकार को सुनकर माँ दुर्गा प्रकट हुई तथा माँ दुर्गा ने अपनी शक्ति से नरकासुर का वध कर दिया। माता दुर्गा की वह शक्ति आज प्रतिमा के रूप में विराजमान है।

पहले माता की भव्य प्रतिमा नगरकोट में स्थापित थी। जब अत्याचारियों के शासन में मंदिर की प्रतिमाओं को खंडित किया जा रहा था, तब माँ के पुजारी योगिराज उनकी प्रतिमा को लेकर मुकुंद दास खींची के यहाँ ले आये। वे रास्ते में रात्रि विश्राम के लिए रुके, समीप में ही केदारगिरी बाबा की गुफा स्थित थी। उन्होंने देवी माता की प्रतिमा बैलगाड़ी से उतारी तथा बैलों को विश्राम के लिए छोड़ दिया और योगिराज बाबा से मुलाकात करने के लिए चले गए। दूसरे दिन सुबह जब योगिराज ने प्रतिमा उठाने की कोशिश की तो वह उस प्रतिमा को हिला भी नहीं सके। इसे माता भगवती की इच्छा मानकर योगिराज ने प्रतिमा को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। प्रतिमा की सेवा-पूजा की जिम्मेदारी केदारगिरी बाबा को सौंपकर वो नगरकोट वापस चले गए। माता की महिमा से यहाँ भक्तों के कार्य सिद्ध होने लगे और धीरे-धीरे यह चमत्कारी शक्तिपीठ अत्यंत विख्यात हो गयी। आज यहाँ लाखों श्रद्धालु देवी की उपासना करने आते हैं।

माता कैला देवी का एक भक्त दर्शन करने के बाद यह बोलते हुए मंदिर से बाहर गया था कि जल्दी ही फिर वापस लौटकर आएगा। कहा जाता है कि वह भक्त आज तक नहीं आया है। ऐसी मान्यता है कि उसके प्रतीक्षा में माता आज भी उधर की ही तरफ देख रहीं है, जिधर वो गया था। इसलिए माता कैला देवी का चेहरा थोडा तिरछा है।

यह मंदिर रहा है डकैतों की साधना स्थली

कैला देवी मंदिर के अंदर और बाहर पुलिस का कडा पहरा रहता है। पुलिस को पता भी लग जाता है कि डकैत आने वाले हैं, लेकिन इसके बावजूद भी डकैत आते हैं और पूजा करके निकल जाते हैं। भरपूर प्रयासों के बावजूद भी डकैतों को रोकना पुलिस के बस में नहीं रहता। जैसे फिल्मों में पुलिस और डकैतों के बीच चोर-सिपाही का खेल प्रतिष्ठा का सवाल होता है, वैसे ही यहाँ की स्थिति रहती रही है। मंदिर के बाहर दुकान लगाने वाले बताते हैं कि अब डकैत कम हो गए या सरेंडर कर चुके हैं। लेकिन क्षेत्र के कुख्यात डकैत भी यहाँ पर आते रहे हैं। इनमें करौली का राम सिंह डकैत, जगन गूर्जर, धौलपुर के बीहड़ों में अड्डा बनाने वाला औतारी और करौली के जंगलों का सूरज माली डकैत नियमित रूप से कैला देवी के मंदिर आते रहे हैं। पुलिस भी उन्हें पकड़ने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाई। साधना के समय आने वाले श्रद्धालुओं को डकैतों ने कभी नुकसान नहीं पहुँचाया।

मेला का आयोजन

कैला देवी के मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में मेला को आयोजित किया जाता है। चैत्र के महीने में आयिजित होने वाले इस मेला में भारत के सभी राज्यों से लगभग 2500000 श्रद्धालु कैला देवी के दर्शन करने के लिए आते हैं। यहाँ मनाई जाने वाली कनक-दण्डौती की रस्म माता के भक्तों के द्वारा निभाई जाती है। ये भक्त मंदिर से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पैदल नहीं बल्कि लेटकर तय करते हैं। इस दौरान वे अपने हाथों से लकीर बनाते हैं और फिर खड़े होकर इस लकीर के आगे लेट करके अन्य लकीर बनाते हैं। इस प्रक्रिया को वो तब-तक दोहराते हैं जब-तक की वे मंदिर तक नहीं पहुँच जाते हैं।

समय – कैला देवी के मन्दिर में पूजा–उपासना का सिलसिला प्रतिदिन सुबह चार बजे मंगला आरती व झांकी से प्रारम्भ होता है। सुबह ग्यारह बजे राजभोग और बारह बजे दिवस शयन होता है। दोपहर के 3 बजे से रात्रि नौ बजे तक मन्दिर में दर्शनार्थियों के आने का सिलसिला लगा रहता है।

मंदिरों की तालिका-

क्र. सं.मंदिर का नाममंदिर का स्थानदेवी / देवता का नाम
1बांके बिहारी मंदिरमथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेशबांके बिहारी (श्री कृष्ण)
2भोजेश्वर मंदिरभोपाल, मध्यप्रदेशभगवान शिव
3दाऊजी मंदिरबलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेशभगवान बलराम
4द्वारकाधीश मंदिरमथुरा, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण
5गोवर्धन पर्वतगोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण
6इस्कॉन मंदिरमथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण, भगवान बलराम
7काल भैरव मंदिरभैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेशभगवान काल भैरव
8केदारनाथ मंदिररुद्रप्रयाग, उत्तराखण्डभगवान शिव
9महाकालेश्वर मंदिरजयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेशभगवान शिव
10नन्द जी मंदिरनन्दगाँव, मथुरानन्द बाबा
11निधिवन मंदिरमथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण, राधा रानी
12ओमकारेश्वर मंदिरखंडवा, मध्यप्रदेशभगवान शिव
13प्रेम मंदिरमथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण, राधा रानी
14राधा रानी मंदिरबरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण, राधा रानी
15श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिरमथुरा, उत्तर प्रदेशश्री कृष्ण, राधा रानी
16बृजेश्वरी देवी मंदिरनगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेशमाँ ब्रजेश्वरी
17चामुंडा देवी मंदिरकांगड़ा, हिमाचल प्रदेशमाँ काली
18चिंतपूर्णी मंदिरऊना, हिमाचल प्रदेशचिंतपूर्णी देवी
19ज्वालामुखी मंदिरकांगड़ा, हिमाचल प्रदेशज्वाला देवी
20नैना देवी मंदिरबिलासपुर, हिमाचल प्रदेशनैना देवी
21बाबा बालकनाथ मंदिरहमीरपुर, हिमाचल प्रदेशबाबा बालकनाथ
22बिजली महादेव मंदिरकुल्लू, हिमाचल प्रदेशभगवान शिव
23साईं बाबा मंदिरशिर्डी, महाराष्ट्रसाईं बाबा
24कैला देवी मंदिरकरौली, राजस्थानकैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार)
25ब्रह्माजी का मंदिरपुष्कर, राजस्थानब्रह्माजी
26बिरला मंदिरदिल्लीभगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी
27वैष्णों देवी मंदिरकटरा, जम्मूमाता वैष्णो देवी
28तिरुपति बालाजी मंदिरतिरुपति, आंध्रप्रदेशभगवान विष्णु
29सोमनाथ मंदिरवेरावल, गुजरातभगवान शिव
30सिद्धिविनायक मंदिरमुंबई, महाराष्ट्रश्री गणेश
31पद्मनाभस्वामी मंदिर(त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरलभगवान विष्णु
32मीनाक्षी अम्मन मंदिरमदुरै या मदुरई, तमिलनाडुमाता पार्वती देवी
33काशी विश्वनाथ मंदिरवाराणसी, उत्तर प्रदेशभगवान शिव
34जगन्नाथ मंदिरपुरी, उड़ीसाश्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा
35गुरुवायुर मंदिरगुरुवायुर, त्रिशूर, केरलश्री कृष्ण
36कन्याकुमारी मंदिरकन्याकुमारी, तमिलनाडुमाँ भगवती
37अक्षरधाम मंदिरदिल्लीभगवान विष्णु