उतर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत गोवर्धन एक नगर पंचायत है। गोवर्धन के आस-पास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा (कन्नी) अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को श्रद्धालु “गिरिराज जी” भी कहते हैं। यहाँ सदियों से श्रद्धालु दूर-दूर से गिरिराज जी की परिक्रमा करने के लिए आते रहते हैं। यह परिक्रमा 7 कोस यानि 21 किलोमीटर की है। परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, राधा कुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूछरी का लोटा, दानघाटी आदि हैं। जहाँ से परिक्रमा शुरू होती है, वहाँ एक प्रसिद्ध दानघाटी मंदिर भी है।
गोवर्धन
राधाकुण्ड से तीन मील दूर गोवर्धन पर्वत है। यह गोवर्धन पर्वत पहले 7 कोस (21 कि.मी) में फैला हुए था, अब यह पर्वत कुछ हिस्सों में जमीन के अन्दर समा गया है, पर्वत के कुछ हिस्से आज भी दिखाई देते हैं। यहीं पर बहुत सुन्दर कुसुम सरोवर बना हुआ है। यहाँ अयोध्या के राजा (वज्रनाभ) हरिदेव जी पधारे थे। वज्रनाभ के द्वारा पधारे हुए चकलेश्वर महादेव जी का यह मंदिर बहुत ही सुन्दर है। गिरिराज जी के आस-पास गोवर्धन ग्राम बसा हुआ है और मनसा देवी का मंदिर भी है। गिरिराज जी का मुखारविंद मानसी गंगा पर है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा, कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।
गोवर्धन में एक विशाल शिला पर भगवान के पदचिन्ह तथा सुरभि गाय, ऐरावत हाथी छपे हैं जिसे भगवान श्री कृष्ण ने मानसी गंगा पर अपने मन से उकेरा था, दीपावली के दिन दीप मालाएँ प्रज्वलित होती हैं और उसमें कई किलो देशी घी की खपत हो जाती है। यहाँ पर श्रद्धालु दण्डौती परिक्रमा लगाने के लिए भी आते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस तरह से लगाई जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलाते हैं, वहाँ तक लकीर खींच लेते हैं फिर उसके आगे लेटते हैं। इसी प्रकार से दण्डौती परिक्रमा की जाती है, करीब दस से पन्द्रह दिन में यह परिक्रमा पूरी हो पाती है। यहाँ गोरोचन, धर्मरोचन, पापमोचन और ऋणमोचन ये चार कुण्ड है और भरतपुर के राजा की बनवाई हुई छतरियां तथा सुंदर इमारतें हैं।
कृष्ण की गोवर्धन लीला
भगवान श्री कृष्ण के काल में इंद्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई, उस समय पूरे ब्रज में जल भरने की आकांशा उत्पन्न हो गई। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। कृष्ण के उस समय गोवर्धन पर्वत को छतरी के समान धारण करके समस्त ब्रजवासियों को उसके नीचे एकत्रित कर लिया था। उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यंत पुराने समय से ही पुराण सम्बन्धी धार्मिक ग्रंथो में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लास पूर्ण वर्णन किया है।
पुरानी कथा
पुरानी कथा के अनुसार श्री गिरिराज जी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। दूसरी मान्यता यह है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी आकाशवाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूरा हो गया है, तो यह सुनकर हनुमान जी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर वापस लौट गए। भगवान श्री कृष्ण के काल में यह पर्वत बहुत ही हरा-भरा एवं सुन्दर था, इसमें अनेक गुफा अथवा कन्दराएँ और शीतल पानी के झरने थे। उस समय के ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के पास अपनी गायें चराया करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की परंपरागत पूजा बंद कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी।
महत्व
गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्व है, प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों श्रद्धालु यहाँ 7 कोस की परिक्रमा लगाने के लिए आते हैं। हर साल ‘गुरु पूर्णिमा’ पर परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। श्री गिरिराज जी की तलहटी समस्त ‘गौडीय सम्प्रदाय’ ‘अष्टछाप कवि’ एवं अनेक वैष्णव रसिका संतों की साधना स्थली रही है।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |