गौतम बुद्ध की जीवनी
गौतम बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। इनका जन्म 563 ई० में हुआ था । इनके पिता का नाम नरेश सिद्धोधन था तथा माता का नाम महामाया (महादेवी ) था । इनके जन्म के सात दिन बाद ही इनकी माता की मृत्यु हो गई इसलिए इनकी परवरिश इनकी मौसी ने और सिद्धोधन की दूसरी रानी गौतमी ने की । सिद्धार्थ का स्वभाव बचपन से ही करुणामयी और गंभीर था । बड़े होने के बाद भी इनके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया । इनके पिता ने इनका विवाह यशोधरा नाम की लड़की से करा दिया । उनका एक पुत्र था जिसका नाम राहुल रखा गया । एक दिन उन्होंने अपने पिता जी से नगर भ्रमण की आज्ञा ली और चल दिए । भ्रमण करते करते वे नगर में बहुत से लोगों से मिले और वह सारथी से सबके बारे में पूछते रहे। मनुष्यों में लालच, घृणा, ईर्ष्या की भावनाएं भरी हुई थी । यह सब देख उनके मन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा । यह सब देखकर उनका मन सांसारिक सुखों से हट गया और उन्होंने निर्णय लिया कि वे इन सांसारिक सुखों और दुखों को त्याग देंगे तथा अपना राजपाठ अपना परिवार त्याग कर वन में कठोर तपस्या करेंगे। तत्पश्चात वे वन में जाकर तपस्या करने लगे । बहुत अधिक समय तक निरंतर निराहार तपस्या करने की वजह से उनका शरीर बहुत ही दुर्बल हो गया परन्तु उनको शांति की प्राप्ति नहीं हुई और वे निराश होकर विचरण करने लगे।
वे घूमते रहे और आख़िर में वह बिहार के एक स्थान पर गए जहां एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और ध्यान करने लगे और वहां पहुंच कर जल्द ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और साथ ही आत्मिक शांति भी मिली । तभी से उनका नाम बुद्ध पड़ गया और उस वृक्ष को लोग बोधिवृक्ष के नाम से जानने लगे । महात्मा बुद्ध के उपदेश सरल और सीधे सादे होते थे । वे कहते थे कि यह पूरा संसार दुःखों से भरा पड़ा है । इसलिए सबको ध्यान करना चाहिए क्योंकि ध्यान से मनुष्य की बुराईयों को खत्म किया जा सकता हैं ।
शिक्षा –
बुद्ध ने शिक्षा के आधार पर बौद्ध धर्म की नींव रखी । सिद्धार्थ ने गुरू विश्वामित्र से शिक्षा प्राप्त की उनके पास उन्होंने वेद और उपनिषदों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया । सिद्धार्थ घुड़दौड़ , तीर कमान , रथ हांकने में माहिर थे ।
बुद्ध के विचार –
* जो वक्त गुजर गया वो कभी वापस नहीं आता । हम हमेशा ही सोचते हैं आज नहीं तो कल काम कर लेंगे ये क्यों नहीं समझते कि कोई भी कार्य समय पर ही किया जाए तो ही अच्छा होता है ।
* उनका कहना है कि जिस प्रकार मोमबत्ती को हमें ही जलाना पड़ता वह खुद नहीं जलती । इसलिए इंसान को आध्यात्मिक ज्ञान होना आवश्यक हैं ।
* उनका कहना था कि जो बीत गया उसके बारे में सोचकर क्यों परेशान होना, और जो अभी तक हुआ नहीं जिसके बारे में जानकारी नहीं उसके लिए परेशान होना गलत है ,अभी सिर्फ उस पर ध्यान दो जो सामने हैं।
* उनका कहना हैं कि समय की परवाह करना सिखों क्योंकि समय बार बार मौका नहीं देता ।
* जो समय बीत जाता हैं तो वापस नहीं आता ।
* जैसी सोच हम रखेंगे वहीं हम बनेंगे ।
* मनुष्य का मन ही उसका शत्रु होता हैं क्योंकि उसका मन ही उसे गलत राह पर ले जाता हैं ।
शुरुआत की तपस्या में सिद्धार्थ ने सिर्फ तिल और चावल ही खाया और धीरे धीरे बिना कुछ खाए तपस्या करते रहे । छः साल तक तपस्या करने के बाद भी तपस्या पूरी नहीं हुई । एक दिन वहां से कुछ महिलाएं निकली । और वे कोई गीत गा रही थी जिसके बोल कुछ ऐसे थे कि ” वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो , ढीला छोड़ देने से सुरीला स्वर नहीं निकलेगा और इनको इतना भी ना खींचो कि ये टूट जाये ” । यह बात सिद्धार्थ को पसंद आई उन्होंने मान लिया कि निराहार ही तपस्या सफल होगी । तभी से उन्होंने निराहार तपस्या शुरू कर दी । 80 वर्ष की आयु में बौद्ध ने धर्म को संस्कृत से पहले सरल भाषा में प्रचार किया । हिन्दू धर्म के मुताबिक बौद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता हैं ।
अनसुनी बातें –
* भगवान बुद्ध से भिक्षुओं के आग्रह करने पर वचन दिया कि वह फिर से जन्म लेकर धरती पर आयेंगे पर 2500 वर्ष से भी अधिक समय बीत गया । पर कहते हैं कि कई बार उन्होंने अवतरित होने की कोशिश की पर यह संभव नहीं हो पाया । फिर आखिर ओशो रजनीश ने बुद्ध को अपने शरीर में आने की आज्ञा दी । ओशो जोरबा बुद्धा के नाम से प्रवचन दिया करते थे । पर अंतिम समय में उनके वचन थे – अप्प दिपो भव: …. सम्माननीय । मतलब अपने दिये तुम खुद बनो और स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो ।
* बुद्ध के गुरु विश्वामित्र , अलारा , कलम , उद्दाका रामापुत्त थे । पर बुद्ध के दस शिष्य थे – आनंद , अनिरुद्ध , महाकश्यप , रानी खेमा , महाप्रजापति , भद्रिका , भृगु , किम्बाल , देवदत्त , और उपाली ।
* बुद्ध के धर्म प्रचार में भिक्षुओं की संख्या बहुत थी इसलिए बौद्ध संघ की स्थापना की गई । बौद्ध संघ में महिलाओं को शामिल करने की अनुमति थीं ।
* माना जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्रवचन बुद्ध के ही हैं क्योंकि जैसे प्रवचन बुद्ध देते थे और जिस तरीके से वह समझाते थे ऐसा अभी तक कोई नहीं है ।
* दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं बची है जहां बौद्ध भिक्षु ना गये हो । दुनिया भर में हर इलाके की खुदाई में बुद्ध की प्रतिमाएं निकली है । सर्वाधिक प्रतिमा का रिकॉर्ड है बौद्ध के नाम ।
गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति –
वैशाख की पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे । एक सुजाता नाम की स्त्री उसी गांव में रहती थी जिसने उसी वटवृक्ष से अपने पुत्र की कामना की थी और उसकी कामना पूरी भी हुई । कामना पूरी होते ही वह स्त्री अपनी मन्नत पूरी करने के लिए उस वटवृक्ष के नीचे एक सोने के थाल में गाय के दूध से बनी खीर भरकर ले आयी । वटवृक्ष के नीचे उसने सिद्धार्थ को देखा और सिद्धार्थ को खीर का थाल भेंट करते हुए कहा कि जैसे इस वटवृक्ष ने मेरी मनोकामना पूरी कि वैसे आपकी भी मनोकामना पूरी हो । ऐसा कहकर प्रणाम करके वह स्त्री वहां से चली गई । उसी रात सिद्धार्थ के ध्यान करते ही एक साधना सफल हो गई और उन्हें सच्चा ज्ञान बोध मिला इसलिए उनका नाम गौतम बुद्ध पड़ा और जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ वह वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाने लगा ।
80 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना आखिरी भोजन कुंडा नाम के एक लोहार के द्वारा भेंट किया गया भोजन था जिसको गौतम बुद्ध ने खाया था और उसी भोजन को खाने से गौतम बुद्ध की तबियत बिगड़ी थी पर जैसे ही कुंडा को गौतम बुद्ध के बीमार पड़ने की वजह पता चली तो बहुत शर्मिंदा हुआ पर गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य के द्वारा कुंडा को संदेश भेजा कि कुंडा तुम परेशान ना हों क्योंकि इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, तम्हारे द्वारा मुझे दिया गया भोजन तो अतुलनीय है ।
बौद्ध की जीवनी पर लिखी गई पुस्तकें –
* बौद्ध और महावीर तथा दो भाषण
* बुद्ध मीमांसा
* युवाओं के लिए बुद्ध
* भारत में बौद्ध धर्म की क्षय
मृत्यु –
महात्मा बुद्ध हमेशा आयु धर्म का प्रचार करते थे । 80 वर्ष की इनकी मृत्यु हो गई थी। वो मर कर भी हमेशा अमर रहेंगे ।आज भी बहुत से लोग उनको भगवान के जैसे पूजते हैं ।