रविदास के दोहे | Ravidas Ke Dohe in Hindi

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।। प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवन चंद चकोरा। प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।। प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा। प्रभु जी, तुम स्वामी हम...

बिहारीलाल के दोहे | Biharilal Ke Dohe in Hindi

दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर-चित्त प्रीति। परिति गांठि दुरजन-हियै, दई नई यह रीति।। अर्थ- प्रेम की रीति अनूठी है। इसमें उलझते तो नयन हैं, पर परिवार टूट जाते हैं, प्रेम की यह रीति नई है इससे चतुर प्रेमियों के चित्त तो जुड़ जाते हैं पर दुष्टों के हृदय में गांठ पड़ जाती...

तुलसीदास के दोहे | Tulsidas Ke Dohe in Hindi

‘तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोड़। तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोड़।। अर्थ- तुलसी दास जी कहते हैं जो दूसरों की बुराई कर खुद प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं वो खुद अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं। ऐसे व्यक्ति के मुँह पर ऐसी कालिख पुतेगी जो कितना भी कोशिश...

सूरदास के दोहे | Surdas Ke Dohe in Hindi

चरन कमल बंदौ हरि राई। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥ बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुनामय बार.बार बंदौं तेहि पाई॥ अर्थ- श्रीकृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को लाँघ लेता हैए अन्धे को सबकुछ दिखाई देने लगता...

रहीम के दोहे | Rahim Ke Dohe in Hindi

कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥ अर्थ- रहीम दास जी ने इस दोहे में सच्चे मित्र के विषय में बताया है। वो कहते हैं कि सगे-संबंधी रूपी संपति कई प्रकार के रीति-रिवाजों से बनते हैं। पर जो व्यक्ति आपके मुश्किल के समय में...

कबीर के दोहे | Kabir Ke Dohe in Hindi

बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। अर्थ- जब में इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम...