दाऊजी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को समर्पित है। दाऊजी मंदिर (बलराम जी) का मुख्य बलदेव मंदिर मथुरा जिले के बलदेव में स्थित है। यह मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। दाऊजी मंदिर यमुना नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को ‘गोपाल लाल जी का मंदिर’ भी कहते हैं। दाऊजी मंदिर में मदन मोहन जी तथा आठ भुजा वाले गोपाल जी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के चारों ओर सर्प की कुण्डली की भांति परिक्रमा मार्ग में पूरी तरह से भरा हुआ पल्लवित बाजार है। दाऊजी मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा कुण्ड भी है, जिसका पुराणों में ‘बलभद्र कुण्ड’ के नाम से वर्णन किया गया है। अब इसे ‘क्षीरसागर’ के नाम भी जाना जाता है।
श्री दाऊजी की मूर्ति
भगवान दाऊजी (बलराम जी) की मूर्ति जिसका मुंह पूर्व दिशा की ओर है तथा दो फुट ऊँचे संगमरमर के पत्थर से बने सिंहासन पर स्थापित है। पुराण सम्बन्धी विवरण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र यानि (बेटे के बेटे) वज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में तथा उनके उपासना क्रम को संस्थापित करने हेतु चार देव विग्रह तथा चार देवियों की मूर्तियाँ निर्माण करवाकर स्थापित की थीं, जिसमें से बलदेव जी का यही विग्रह है, जो ‘द्वापर युग’ के बाद कालक्षेप से भूमिस्थ हो गया था। पुराने वेदों के अनुसार यह मूर्ति प्राचीन कुषाण कालीन है, जिसका निर्माण काल दो सहस्त्र या इससे अधिक होना चाहिये। ब्रज मंडल के प्राचीन देव स्थानों में यदि बलदेव विग्रह को सर्वाधिक पुराना कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
भगवान दाऊजी की काले रंग की यह मूर्ति लगभग 8 फुट ऊँची और साढ़े तीन फुट चौड़ी है। दाऊजी की मुख्य मूर्ति के पीछे शेषनाग सात फनों से युक्त छाया करते हैं। मूर्ति नृत्य मुद्रा में स्थापित है, दाहिना हाथ सिर के ऊपर वरद में है एवं हाथ में चषक है। विशाल नेत्र, भुजाओं में आभूषण, कलाई में कंडूला उत्कीर्णित है। मुकत में बारीक नक्काशी का आभास होता है, पैरों में भी आभूषण प्रतीत होते हैं तथा कटि प्रदेश में धोती पहने हुए हैं। मूर्ति के कानों में कुण्डल हैं तथा कंठ में वैजयन्ती माला उत्कीर्ण है। मूर्ति के सिर के ऊपर से लेकर पैरों तक शेष नाग स्थित है, शेष के तीन वलय हैं, जो मूर्ति में स्पष्ट दिखाई देते हैं। योगशास्त्र की कुंडलिनी शक्ति के प्रतीक रूप हैं, क्योंकि पुरानी मान्यता के अनुसार बलदेव शक्ति के प्रतीक योग एवं शिलाखण्ड में स्पष्ट हैं। दोनों भुजाओ में, कंठ में, पैरों में आभूषण का उत्कीर्णन है।
इतिहास
दाऊजी मंदिर में बलदेव मूर्ति के प्रकट का भी रोचक इतिहास है। मध्य काल का समय था, मुग़ल साम्राज्य का प्रतिष्ठा सूर्य मध्यान्ह में था। बादशाह अकबर अपने कठिन परिश्रम, बुद्धिचातुर्य एवं युद्ध कौशल से एक ऐसी सल्तनत की प्राचीर के निर्माण में लीन था, जो उसके कल्पना लोक की मान्यता के अनुसार कभी न ढहे और पीढ़ी दर पीढ़ी मुगलिया खानदान हिंदुस्तान की मात्रभूमि पर बिना भय के अपनी सल्तनत को कायम रखकर गद्दी का उपभोग करता रहे। एक ओर यह मुगलों की स्थापना का समय था, दूसरी ओर मध्ययुगीन धर्मांचार्य एवं संतो के अवतरण तथा अभ्युदय का स्वर्ण युग ब्रज मंडल में तत्कालीन धर्मांचार्यों में महाप्रभु वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं चैतन्य सम्प्रदाय की मान्यताएं बहुत ही लोकप्रिय थी। गोवर्धन के पास एक बहुत ही पुराना तीर्थस्थल ‘सूर्यकुण्ड’ के तट पर स्थित ग्राम भरना खुर्द है। इसी सूर्यकुण्ड के घाट पर परम सात्त्विक ब्राह्मण वंशावतंश गोस्वामी कल्याण देवाचार्य तपस्या करते थे, उनका जन्म भी इसी ग्राम में एभयराम के घर में हुआ था।
कल्याण देव का स्वप्न
एक दिन कल्याण देव जी को तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा हुई, उन्होंने यात्रा पर जाने का निश्चय किया और घर से प्रस्थान कर दिया। गिर्राज जी की परिक्रमा करने के बाद मानसी गंगा में स्नान किया और फिर मथुरा पहुँच गए। मथुरा पहुँच कर यमुना नदी में स्नान करके भगवान श्री कृष्ण के दर्शन किये और आगे चल दिए। उसके बाद वे विद्रुमवन पहुँचे, जहाँ आज वर्तमान में बलदेव नगर स्थित है। बलदेव में कल्याण देव ने रात में आराम किया, घने बरगद के पेड़ की छाया तथा सरोवर का किनारा, ये दोनों स्थितियां उनको अच्छी लगीं और कल्याण देव ने कुछ दिनों तक इस स्थान पर तपस्या करने का संकल्प लिया। एक दिन कल्याण देव अपने आन्हिक कर्म से निवृत हुए ही थे कि उनके सामने भगवान बलराम (हल मूसलधारी) प्रकट हुए और बोले कि “मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत खुश हूँ, वर मांगो”, कल्याण देव ने भगवान को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोले “प्रभु में आपके प्रतिदिन दर्शन चाहता हूँ और मुझे कुछ नहीं चहिये, अत: आप रोज़ाना मेरे घर पधारें।” भगवान बलराम ने तथास्तु कहकर स्वीकृति दी और अन्तर्धान हो गये। यह आदेश किया कि जिस भाव से जगदीश यात्रा कर रहे हो, वे सभी फल तुम्हें यहीं प्राप्त होंगे, इसलिए इसी बरगद के पेड़ के नीचे मेरी और रेवती की मूर्तियां जमीन के अन्दर हैं, उन्हें प्रकट करो। अब कल्याण देव की व्याकुलता बढ़ गई और जिस स्थान का आदेश भगवान बलराम ने किया, वे उस जगह को खोदने के काम में जुट गये।
मूर्ति स्थापना
जिस दिन कल्याण देव को साक्षात्कार हुआ। उसी पूर्व रात को गोकुल में बल्लभाचार्य महाप्रभु के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ को स्वप्न आया कि “जिस श्यामा गाय के बारे में आप परेशान हैं, वह रोज मेरी मूर्ति के ऊपर दूध स्त्रवित कर देती है और ग्वाला निर्दोष है। मेरी मूर्तियाँ विद्रुमवन में बरगद के पेड़ के नीचे भूमि के अन्दर है, उसे प्रकट कराओ”। यह श्यामा गाय आज से जच्चा होने के बावजूद दूध नही देती थी। महाराज को दूध के बारे में ग्वाल के ऊपर संदेह होता था। भगवान बलराम की आज्ञा के अनुसार गोस्वामी गोकुलनाथ ने उस स्थान पर जाने का निर्णय किया। गोस्वामी ने वहाँ जाकर देखा कि कल्याण देव मुर्तियुगल को भूमि से खोदकर निकाल चुके हैं। वहाँ पहुंचकर गोस्वामी ने कल्याण देव को प्रणाम किया और दोनों ने अपनी-अपनी बात पर चर्चा की। अत्यंत हर्ष विह्वल धर्मांचार्य ह्र्दय को विग्रहों के स्थापना के निर्णय की चिंता हुई और निश्चय किया कि इस घोर-घने जंगल में मुर्तिद्वय को हटाकर क्यों न गोकुल में स्थापना की जाए। अनेक प्रयास करने के बाद भी मूर्ति अपनी जगह से नहीं हिली और सारा परिश्रम बेकार में गया। दोनों ने हार मानकर मूर्ति की अपने प्रकट के स्थान पर ही स्थापना कर दी। अत: जहाँ कल्याण देव तपस्या करते थे, उसी पर्णकुटी में सर्वप्रथम स्थापना हुई, जिसके द्वारा कल्याण देव को नित्य घर में निवास करने का दिया वरदान सफल हुआ।
खीर का भोग
एक दिन संयोगत अगहन के महीने की पूर्णमासी थी। षोडसोपचार क्रम से वेदाचार के अनुरूप दोनों मूर्तियों की अर्चना हो गई तथा पहले भगवान बलराम को खीर का भोग रखा गया, उस दिन से लेकर आज तक रोज़ाना खीर भोग में जरुर आती है। गोस्वामी गोकुलनाथ ने एक नये मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी वहन करने का संकल्प लिया तथा पूजा अर्चना की जिम्मेदारी कल्याण देव ने ली। उस दिन से लेकर आज तक कल्याण वंशज ही भगवान बलराम की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
मंदिर की मान्यताएं
बलदेव एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जिसकी मान्यताएं हिन्दू धर्म के व्यक्ति लम्बे समय से करते आये हैं। धर्मांचार्यों में बल्लभाचार्य जी के वंश की तो बात ही अलग है। निम्बार्क, माध्व, गौडीय, रामानुज, शंकर, कार्ष्णि, उदासीन आदि समस्त धर्मांचार्य में बलदेव की मान्यताएं है, सभी नियमित रूप से बलदेव के दर्शनार्थ पधारते रहे हैं और आज भी यह व्यवस्था लागू है।
प्रमुख उत्सव
दाऊजी मंदिर में मनाएं जाने वाले उत्सव बलभद्र सम्प्रदाय से हैं। साल भर कोई न कोई उत्सव होता ही रहता है, किन्तु मुख्यतः वर्ष प्रतिपदा, चैत्र पूर्णिमा, बलदेव जी का रास उत्सव, अक्षय तृतीय (चरण दर्शन) गंगा दशहरा, देवशयनी एकादशी, श्रावण के महीने में झूला उत्सव, श्रीकृष्ण जन्मष्टमी, बलदेव श्री दाऊजी जी का जन्म उत्सव (भाद्रपद शुक्ल 6) तथा राधाष्टमी, दशहरा, शरद पूर्णिमा, दीपावली, गोवर्धन पूजा (अन्यकूट) यमद्वितीया तथा समस्त कार्तिक महीने के उत्सव मार्गशीर्ष पूर्णिमा (पाटोत्सव) तथा माघ की बसंत पंचमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण-पंचमी तक का एक से डेढ़ माह का होली उत्सव प्रमुख है। होली में विशेषकर फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होली पूजन सम्पूर्ण हुरंगा जो कि ब्रज मंडल के होली उत्सव का मुकुट मणि है, अत्यंत सुरम्य एवं दर्शनीय है। पंचमी को होली उत्सव के बाद 1 वर्ष के लिए इस मदन पर्व को विदाई दी जाती है। बलदेव में प्रतिमाह पूर्णिमा को विशेष मेला लगता है, फिर भी साल भर चैत्र पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, मार्गशीर्ष पूर्णिमा एवं देवछट को बहुत भीड़ होती है। दाऊजी मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। भगवान विष्णु के रूपों की तिथियों को विशेष स्नान भोग एवं पूजा अर्चना होती है, और 2 बार स्नान श्रृंगार एवं विशेष भोग भाँग की व्यवस्था होती है। दाऊजी मंदिर का मुख्य प्रसाद माखन एवं मिश्री है।
दर्शन का समय
दाऊजी मंदिर में दर्शन करने का समय प्राय: गर्मी में अक्षय तृतीय से हरियाली तीज तक सुबह 6 बजे से 12 बजे तक, दोपहर 4 बजे से शाम 5 बजे तक, शाम 7 बजे से रात्रि 10 बजे तक है।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |