परिचय
भगत सिंह गुलाम भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी थे। देश को आज़ाद कराने के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों का सामना बहुत ही साहस से किया। भगत सिंह ने अपनी बहादुरी से अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिए केंद्रीय संसद में बम से विस्फोट किया और पर्चे भी फेंके, परन्तु वहाँ पर वह अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। 23 मार्च सन. 1931 को जब भगत सिंह और उनके अन्य साथियों को फांसी होने वाली थी, तब भी वह एक वीर की तरह भारत माँ का नारा लगाते हुए अपने सहयोगियों के साथ फांसी पर चढ़े।
जन्म व बचपन
भगत सिंह का जन्म 27 दिसम्बर सन. 1907 को लायलपुर के बंगा जिले में एक सिख परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। 13 अप्रैल सन. 1919 को जलियांवाला बाग में हुए रक्तपात से उनके अन्दर एक क्रांति की आग उमड़ने लगी।
प्रारंभिक कार्य
भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर भारत की आज़ादी के लिए “नौजवान भारत सभा” की स्थापना की। राम प्रसाद और उनके जैसे अन्य क्रांतिकारियों को फांसी होने से वह बहुत निराश हुए। तत्पश्चात भगत सिंह ने “नौजवान भारत सभा” को चन्द्रशेखर आज़ाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन संगठन के साथ जोड़ दिया। भगत सिंह ने अपने योगदान से इस संगठन को एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का मुख्य काम नवयुवकों को भारत देश की आज़ादी के लिए हर प्रकार से मजबूत बनाना था।
जीवन कार्य
सन. 1928 को साइमन कमीशन के बहिष्कार होने से लोगों ने भयानक प्रदर्शन किए, जिसके कारण अंग्रेजों ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बेतोड़ लाठियां चलाई और जिसमें घायल होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह, चन्द्रशेखर और राजगुरु सहित अन्य साथियों ने जे० पी० सांडर्स को मारने की योजना बनाई। 17 दिसम्बर सन. 1928 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज अधिकारी जे० पी० सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। जिसमें चन्द्र शेखर आज़ाद ने अपना पूर्ण सहयोग दिया।
भगत सिंह रक्तपात नहीं चाहते थे, परन्तु अंग्रजों के द्वारा अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होना उनका स्वाभाविक ही था। भगत सिंह और उनके अन्य साथी चाहते थे कि अंग्रेजों के शासन को पता चले कि अब हिंदुस्तान के लोग जाग चुके हैं और वह अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध खड़े हैं। भगत सिंह ने संसद में बम फेंकने की योजना बनाई, चूँकि भगत सिंह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने संसद में किसी खाली जगह पर बम फेंकने की सोची। 8 अप्रैल सन. 1929 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर संसद में किसी खाली जगह पर बम फेंका और अपने साथ लाए पर्चे जिन पर सन्देश लिखा था वह पर्चे भी हवा में उछाल दिये और “इंकलाब-जिन्दाबाद!” का नारा लगाने लगे। कुछ ही देर बाद भगदड़ के कारण वहाँ सिपाही आ गए। भगत सिंह चाहते तो वहाँ से भाग सकते थे, परन्तु उन्होंने दंड को कबूल किया और सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार हुए।
भगत सिंह ने जेल में रहने के दौरान जो लेख और पत्र अपने सम्बन्धियों को लिखे उसमें उनके विचार व्यक्त होते हैं। जेल में भगत सिंह ने अंग्रेजी भाषा में एक लेख लिखा ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जो काफी प्रचलित हुआ। भगत सिंह जेल में करीब 2 साल तक रहे और इसी दौरान उन्होंने भूख हड़ताल भी की, जिसमें उनके साथी यतीन्द्रनाथ दास की भूख हड़ताल से मृत्यु हो गई।
फांसी
करीब 2 साल तक जेल में रहने के पश्चात 23 मार्च सन. 1931 को भगत सिंह सहित सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों के द्वारा फांसी की सजा दी गई। फांसी पर जाने से पहले भी उनके मुख पर डर का कोई अहसास नहीं था वे लोग अपने देश के लिए मस्ती में गाते हुए चल रहे थे।
“मेरा रंग दे बसन्ती चोला मेरा रंग दे”
“मेरा रंग दे बसन्ती चोला। माय रंग दे बसन्ती चोला।।”