ब्रजेश्वरी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगडा नगर में स्थित है। इस मंदिर को नगरकोट की देवी, कांगड़ा देवी और नगरकोट धाम के नाम से भी जाना जाता है। कांगड़ा बाणगंगा और मांझी नदियों के मध्य बसा हुआ है। ब्रजेश्वरी देवी को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों के द्वारा किया गया था। मंदिर में माता ब्रजेश्वरी देवी के दर्शन पिण्डी के रूप में होते हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित और मुख्य पिंडी माँ ब्रजेश्वरी, दूसरी माँ भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी माँ एकादशी की है। इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। मंदिर परिसर में भगवान भैरव की चमत्कारी प्रतिमा और अन्य कई प्रतिमाएं स्थापित है। इस मंदिर में तीन गुबंद हैं, जो हिन्दू, मुस्लिम तथा सिक्ख धर्म के प्रतीक माने जाते हैं।
पौराणिक कथा
ब्रजेश्वरी मंदिर 51 शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थानों पर देवी के अंग गिरे थे। भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें राजा दक्ष ने भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा था क्योंकि राजा दक्ष भगवान शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया गया जिसे माता सती सहन नहीं कर पायीं और वह वहीं हवन कुण्ड में कुद गयीं। भगवान शंकर को जब ये बात पता चली, जिसके बाद वे वहाँ पर पहुँच गए और माता सती के शरीर को हवनकुण्ड से निकालकर तांडव करने लगे, जिसके कारण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल मच गई। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बाँट दिया, जो अंग जहाँ पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया।
इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजेश्वरी धाम शक्तिपीठ में माँ के वक्ष की पूजा होती है।
भगवान भैरव
मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है। इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर माँ से आने वाले मुसीबत का निवारण करने का आग्रह करते हैं। यह ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार और महिमा ही है कि आने वाली हर मुसीबत का माता के आशीर्वाद से निवारण हो जाता है।
इतिहास
कांगड़ा नगर समुद्र तल से लगभग 2350 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। कांगड़ा बाणगंगा और मांझी नदियों के मध्य बसा हुआ है। कांगड़ा को पहले नगरकोट के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि इसे राजा सुसर्मा चंद ने महाभारत के युद्ध के बाद बसाया था। 18वीं शताब्दी में राजा संसारचंद के शासनकाल में यहाँ पर कला-कौशल का बोलबाला था। कांगड़ा किले, मंदिर, बासमती चावल व कटी हुई नाक को फिर से जोड़ने और नेत्र चिकित्सा के लिए दूर-दूर तक विख्यात था।
कहा जाता है पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था। इस मंदिर को अनेक बार विदेशी लुटेरों के द्वारा लूटा गया। महमूद गजनवी ने सन. 1009 में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया था। महमूद गजनवी मंदिर के चाँदी से बने दरवाजे तक उखाड़ कर ले गया था। माना जाता है कि महमूद गजनवी ने लगभग पाँच बार मंदिर पर हमला कर उसे लूटा था। उसके बाद सन. 1337 में मुहम्मद- बिन-तुगलक और पाँचवीं शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने भी इस मंदिर को लूटा और तबाह किया। इस तरह इस मंदिर का अनेक बार निर्माण होता रहा। आखिर में सन. 1905 में एक भंयकर भूकंप से मंदिर पूर्ण तरह से नष्ट हो गया था, जिसके बाद सन. 1920 में वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण किया गया।
आरतियाँ
ब्रजेश्वरी देवी के इस मंदिर में पाँच बार आरती की जाती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले माँ की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि शृंगार में ही माँ की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद माँ का रात्रि शृंगार उतारकर उनकी तीनों पिंडियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद पीले चंदन से माँ का शृंगार कर माता को नये वस्त्र और सोने के आभूषण धारण कराये जाते हैं। इसके बाद चना पूड़ी, फल और मेवे का भोग लगाकर माँ की प्रातः कालीन आरती होती है।
दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है। दोपहर की आरती के समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही बने एक विशेष स्थान पर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। दोपहर बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोले जाते हैं और भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। कहते हैं कि एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद है और भोग में चावल चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के बाद इन पिंडियों को स्नान कराकर पंचामृत से दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नये वस्त्र पहनाकर माँ का शृंगार किया जाता है। इसके साथ ही सायंकाल आरती संपन्न होती है। रात को माँ की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी माता की शैय्या तैयार कर पूजा अर्चना करते हैं।
मंदिरों की तालिका-
क्र. सं. | मंदिर का नाम | मंदिर का स्थान | देवी / देवता का नाम |
1 | बांके बिहारी मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | बांके बिहारी (श्री कृष्ण) |
2 | भोजेश्वर मंदिर | भोपाल, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
3 | दाऊजी मंदिर | बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश | भगवान बलराम |
4 | द्वारकाधीश मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
5 | गोवर्धन पर्वत | गोवर्धन, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण |
6 | इस्कॉन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, भगवान बलराम |
7 | काल भैरव मंदिर | भैरवगढ़, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान काल भैरव |
8 | केदारनाथ मंदिर | रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड | भगवान शिव |
9 | महाकालेश्वर मंदिर | जयसिंहपुरा, उज्जैन, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
10 | नन्द जी मंदिर | नन्दगाँव, मथुरा | नन्द बाबा |
11 | निधिवन मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
12 | ओमकारेश्वर मंदिर | खंडवा, मध्यप्रदेश | भगवान शिव |
13 | प्रेम मंदिर | मथुरा-वृन्दावन, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
14 | राधा रानी मंदिर | बरसाना, मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
15 | श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर | मथुरा, उत्तर प्रदेश | श्री कृष्ण, राधा रानी |
16 | बृजेश्वरी देवी मंदिर | नगरकोट, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ ब्रजेश्वरी |
17 | चामुंडा देवी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | माँ काली |
18 | चिंतपूर्णी मंदिर | ऊना, हिमाचल प्रदेश | चिंतपूर्णी देवी |
19 | ज्वालामुखी मंदिर | कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी |
20 | नैना देवी मंदिर | बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश | नैना देवी |
21 | बाबा बालकनाथ मंदिर | हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश | बाबा बालकनाथ |
22 | बिजली महादेव मंदिर | कुल्लू, हिमाचल प्रदेश | भगवान शिव |
23 | साईं बाबा मंदिर | शिर्डी, महाराष्ट्र | साईं बाबा |
24 | कैला देवी मंदिर | करौली, राजस्थान | कैला देवी (माँ दुर्गा की अवतार) |
25 | ब्रह्माजी का मंदिर | पुष्कर, राजस्थान | ब्रह्माजी |
26 | बिरला मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी देवी |
27 | वैष्णों देवी मंदिर | कटरा, जम्मू | माता वैष्णो देवी |
28 | तिरुपति बालाजी मंदिर | तिरुपति, आंध्रप्रदेश | भगवान विष्णु |
29 | सोमनाथ मंदिर | वेरावल, गुजरात | भगवान शिव |
30 | सिद्धिविनायक मंदिर | मुंबई, महाराष्ट्र | श्री गणेश |
31 | पद्मनाभस्वामी मंदिर | (त्रिवेन्द्रम) तिरुवनंतपुरम्, केरल | भगवान विष्णु |
32 | मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै या मदुरई, तमिलनाडु | माता पार्वती देवी |
33 | काशी विश्वनाथ मंदिर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश | भगवान शिव |
34 | जगन्नाथ मंदिर | पुरी, उड़ीसा | श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा |
35 | गुरुवायुर मंदिर | गुरुवायुर, त्रिशूर, केरल | श्री कृष्ण |
36 | कन्याकुमारी मंदिर | कन्याकुमारी, तमिलनाडु | माँ भगवती |
37 | अक्षरधाम मंदिर | दिल्ली | भगवान विष्णु |