अमीर खुसरो का जन्म कब हुआ था (Amir Khusro ka janm kab hua tha)  

अमीर खुसरो का वास्तविक नाम – अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद था । अमीर खुसरो को हमेशा से ही कविता करने का बहुत शौक था । इनकी जो कविता के प्रति प्रतिभा थी उसकी वजह से  अपने बचपन में ही इनका नाम बहुत विख्यात हो गया था । इन्होंने दहलवी के द्वारा धार्मिक संकीर्णता और राजनीति चल कपट के माहौल में रहकर भी हिन्दू- मुस्लिम और राष्ट्रीय एकता, मानवता, सौंदर्य, प्रेम और सांस्कृतिक के प्रति अपनी पूरी ईमानदारी से काम किया । इन्होंने एक प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के द्वारा अपने ऐतिहासिक ग्रंथ ‘ तारीखे – फ़ीरोज़ ख़िलजी ने खुसरो की चुलबुली फारसी कविताओं से खुश होकर ही इन्हें ‘अमीर ‘ का  खिताब दिया था । और यह खिताब मिलना भी उस समय में बहुत इज्जत की बात हुआ करता था । 

Amir Khusro ka janm kab hua tha

खुसरो का जन्म कहां और कब हुआ था – 

खुसरो का जन्म  सन् 1253 ई में उत्तर प्रदेश के एटा जिले में स्थित पटियाली नाम के एक गांव में हुआ था । यह गांव गंगा किनारे स्थित था । यह गांव पटियाली को उस समय मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था । खुसरो का जन्म हुमायूं काल के दौरान हामिद बिन फ़जलुल्लाह जमाली के द्वारा लिखे गए ऐतिहासिक ग्रंथ ‘ तजकिरा सैरुल आरफीन ‘ के समय का माना जाता है । 

बचपन की यादें – 

खुसरो की मां दौलत नाज़ थी जो कि एक हिन्दू राजपूत थीं । इनकी मां दिल्ली के एक बड़े घराने एमादुल्मुल्क की पुत्री थी । इस घराने के पुरुष बादशाह डरबन के युद्ध मंत्री थे । इसलिए इनको राजनीतिक दबाव की वजह से मुस्लिम धर्म को अपनाना पड़ा । अपना धर्म बदलने के बाद भी इनके घर में हिन्दू धर्म के रीती-रिवाजों को मानते थे । खुसरो का जो ननिहाल था वहां हमेशा गाने – बजाने और संगीत का माहौल ही होता था । इनके जो नाना थे उनको अलग-अलग तरह का खाना खाने का बहुत शौक था । खुसरो ने इस माहौल का वर्णन करते हुए ‘तम्बोला ‘ नाम की एक ( किताब) मसनवी भी लिखी थी । इन दो अलग-अलग परम्पराओं का पूरा असर छोटे खुसरो पर पड़ा । जब खुसरो का जन्म हुआ था तब इनके पिता इनको एक कपड़े में लपेटकर सूफी दरवेश  के पास लेकर गए । सूफी दरवेश ने छोटे से नन्हे से खुसरो की मासुमियत और तेजयुक्त चेहरे को देखते ही तुरंत उनके बारे में भविष्यवाणी की कि ‘ आवरदी कसे राके दो कदम । आज खाकानी पेश ख्वाहिश बूद ‘ । इसका मतलब यह है कि तुम जिस बच्चे को मेरे पास लाए हो वह बहुत ही होशियार है और यह खाकानी नामक विश्व प्रसिद्ध विद्वान से भी दो आगे जाएगा । 

शिक्षा – 

चार वर्ष की अल्प आयु में खुसरो अपने पिता के साथ दिल्ली चले गए थे और उन्होंने आठ वर्ष की आयु तक अपनी शिक्षा अपने पिता से ही अपने भाइयों के साथ प्राप्त की । खुसरो तीन भाई थे उनके पहले भाई का नाम एज्जुद्दीन अली शाह था । इनके दूसरे भाई का नाम हिसामुद्दीन कुतलग था । तीन भाइयों में खुसरो सबसे छोटे थे । खुसरो के पिता को ग्रंन्थों के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था पर उन्होंने अपने सभी बेटे और खासकर अपने सबसे छोटे बेटे खुसरो की शिक्षा का हर तरीके से अच्छा प्रबंध किया । खुसरो की प्राथमिक शिक्षा मकतब में पूरी हुई थी । 

और छ: वर्ष के होने के बाद ही वो‌ मदरसा अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए चले गए ।

अमीर खुसरो के गुरू कौन थे – 

अमीर खुसरो के गुरू शेख निजामुद्दीन औलिया था और ये अफगान के एक महान संत भी थे । जब अमीर खुसरो 8 साल के थे तभी इन्होंने शेख निजामुद्दीन औलिया के शिष्य बन गए थे । और इन्हें से प्रेरणा लेकर खुसरो एक महान कवि और संगीतकार बने । खुसरो खड़ी बोली के लिए भी एक लोकप्रिय कवि माने जाते हैं । 

खुसरो की खोज –

  •  सितार की खोज – 

अमीर खुसरो ने दहलवी में एक सितार की रचना की । वीणा और बैजो  दोनों को ही इन्होंने सितार का अविष्कार किया । कुछ लोग इसे गिटार के नाम से भी जानते हैं । 

  • तबले की खोज – 

तबला हजारों साल पुराने वाद्ययंत्रों में से एक है । परंतु ऐतिहासिक वर्णन मे बताया गया है कि 130वीं शताब्दी में भारतीय कवि और संगीतकार अमीर खुसरो ने तबले का अविष्कार किया था । 

खुसरो के जीवन पर लिखे गए पद् –

* तु आं शाहे कि बर ऐवाने कसरत , कबूतर गर नशीन्द बाज गरदद। गुरबे मुस्तमंदे बर-दर आमद बयायद अंदरूं या बाज़ गरदद ।।

अर्थात – तू एक ऐसा शासक है कि यदि तेरे प्रवास या घर की चोटी पर कोई कबूतर बैठ जाए तो तेरी असीम अनुकम्पा और कृपा से वह बाज़ बन‌ जाएगा । 

* खुसरो के मन में यह विचार आया ही था कि तभी भीतर से एक  संत का सेवक आया और उसने खुसरो के सामने एक पद पढ़ा – 

बयायद अंदर रूं मरदे हकीकत , कि बामा यकनफस हमराज गरदद । अगर अबलह बुअद आं मरदे – नादां । अजां राहे कि आमद बाज गरदद ।।

अर्थात – हे सत्य के अन्वेषक , तुम भीतर आ जाओ , ताकि कुछ समय के लिए ही सही हमारे रहस्य के भागी बन सको। यदि आगुन्तक अज्ञानी है तो जिस रास्ते से आया है उसी रास्ते पर लौट जाएं ।

अमीर खुसरो की रचनाएं – 

जलालुद्दीन की प्रसंशा के बाद खुसरो ने मिफतोलफतह नामक एक ग्रंथ की  थी । और इस रचना के बाद ही खुसरो को राज्य कवि घोषित किया गया था । खुसरो ने पांच ग्रंथों की रचना की थी जो बाद में पंच-गंच के नाम से प्रसिद्ध हुई थी । ये सभी रचनाएं इस प्रकार है – हश्त विहिश्त, मल्लोल अनवर, मजून लैला, आईने -ए-सिकंदरी और  शिरीन खुसरो।

* मेरे महबूब के घर रंग है री 

* बहुत कठिन है डगर पनघट की 

* ऐ री सखी मोरे पिया घर आए 

* छाप तिलक सब छीन्ही रे 

* ज़िहाल-ए मिस्की मकुन तग़ाफ़ुल 

* आ घिर आई दई मारी घंटा कारी 

* परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी  घर आवना 

* बहोत रही बाबुल घर दुल्हन 

* जब यार देखा नैन भर 

* दुसुखने 

* अम्मा मेरे बाबा को भेजो री 

* तोरी सूरत के बलिहारी 

* दैया थी मोहे भिजोया थी निजम के रंग में 

* आ घिर आई दई मारी घाटी कारी 

* मोरा जोबाना नवेलरा भयो हैं गुलाल 

* बहुत दिन बीते पिया को देखे 

* ढकोसले या अनमेलियां 

* काहे को ब्याह बिदेस 

* हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल 

* सूफी दोहे 

* जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या 

अमीर खुसरो के पहेलियां –

* घूस घुमेला लहंगा पहिने , एक पांव से रहे खड़ी 

आठ हाथ है उस नारी के,  सूरत उसकी लगे परी । 

सब कोई उसकी चाह करें , मुस्लिम, या हिन्दू  

खुसरो ने यही कही पहेली , दिल में अपने सोच जरी।

उत्तर – छतरी 

* खड़ा भी लोटा पड़ा भी लोटा ।

है बैठा और कहे है लोटा 

खुसरो कहे समझ का टोटा ।।

उत्तर – लोटा

* बाला था जब सबको भाया , बड़ा हुआ कुछ काम ना आया।

खुसरो कह दिया उसका नाव , अर्थ करो‌ नहीं छोड़ो गांव ।।

उत्तर – दिया 

एक नार कुएं में रहे , वाका नीर खेत में बाहे ।

जो कोई वाके नीर को चाखे , फिर जीवन कीआस न राखे। 

उत्तर – तलवार 

अमीर खुसरो के गीत – 

1. तोरी सूरत के बलिहारी , निजाम , 

 तोरी सूरत के बलिहारी । 

सब सखियन में चुनर मेरी मैली , 

देख हंसें नर नारी , निजाम …

अबके बहार चुनर मोरी रंग दें , 

पिया रखले लाज हमारी , निजाम … 

सदका बाबा गंज शकर का , 

रख ले लाज हमारी , निजाम … 

 कुतब , फरीद मिल आए बराती , 

खुसरो राजदुलारी , निजाम …

कौउ सास कौउ ननद से झगड़े , 

हमको आस तिहारी , निजाम, 

तोरी सूरत के बलिहारी , निजाम… 

2. छाप तिलक सब छीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके 

प्रेम भटी का मदवा पिलाइके 

मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके 

गोरी गोरी बईयां , हरी हरी चूड़ियां 

बईयां पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके 

बल बल जाऊं मै तोरे रंग रजवा 

अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके 

खुसरो निजाम के बल बल जाए 

मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके 

छाप तिलक सब छीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके ।

तूतिए हिन्द किसे कहते हैं – 

अमीर खुसरो के द्वारा लिखी गई ऐसी बहुत सी महत्वपूर्ण रचनाएं हैं जिनको भारत के साथ साथ ईरान , पाकिस्तान , अफगानिस्तान और बांग्लादेश और बाकी देशों में भी खुसरो की रचनाओं को बहुत ही उत्साह के साथ पढा जाता है । इसलिए इन्हें तूतिए हिन्द भी कहा जाता हैं । 

अमीर खुसरो की मृत्यु कब हुई थी – 

अमीर खुसरो का निधन सन् 1325 में दिल्ली में हुआ था ।