परिचय
कमलादेवी चट्टोपाध्याय भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। लोग कमलादेवी चट्टोपाध्याय को नारी आन्दोलन की पथ प्रदर्शक के तौर पर भी जानते हैं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय विचारों से गाँधीवादी महिला थीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय को भारत में हस्तकला के क्षेत्र में नव-जागरण लाने वाली महिला के रूप में भी जाना जाता है। कमलादेवी चट्टोपाध्याय कार्यकर्ता, कला और साहित्य की समर्थक भी थीं। अपनी जिंदगी की तन्हाई और महात्मा गांधी के आह्वान की वजह से वे राष्ट्र सेवा से जुड़ गईं थीं।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने देश के हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र को एकीकृत किया और उसे राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान प्रदान की। कमलादेवी चट्टोपाध्याय को महात्मा गाँधी काफी मानते थे। कमलादेवी चट्टोपाध्याय एक साहसिक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्हें गाँधी जी ने ‘सुप्रीम रोमांटिक हिरोइन’ का ख़िताब दिया था।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय एक ब्राह्मण थीं, मगर उसके बाद भी वे समाजवादी थीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय की शादी बचपन में ही हो गई थी, मगर उसके बाद भी वे अधिकारवादी थीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय एक ऐसी राजनेता थीं, जिन्हें कुर्सी का लालच नहीं था। कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अंदर राष्ट्रभक्ति का इतना जज्बा था कि आजादी के बाद जब सरकार इन्हें पदक दे रही थीं, तो इन्होंने पदक स्वीकार करने से मना कर दिया। देश के बंटवारे के बाद कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने शरणार्थियों के पुनर्वास का काम शुरू कर दिया। वो गांधी जी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नायडू और कस्तूरबा गांधी से बहुत प्रभावित थीं।
सन् 1923 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन से जुडीं, उस समय वे लंदन में थीं और आन्दोलन से जुड़ने के बाद वे भारत वापस आ गईं। भारत आने के बाद वे सेवादल और गांधीवादी संगठनों में अपना योगदान देने लगीं।
शुरूआती जीवन
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को मंगलोर (कर्नाटक) में हुआ था। कमलादेवी चट्टोपाध्याय एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार से थीं। उनके माता-पिता की 4 संतानें थी, जिनमें से वे सबसे छोटी थीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय के पिता का नाम ‘अनंथाया धारेश्वर’ था, जो मंगलोर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर थे। कमलादेवी चट्टोपाध्याय की माता का नाम ‘गिरिजाबाई’ था, जो पढ़ी-लिखी, संस्कारी और बहादुर महिला थी। कमलादेवी चट्टोपाध्याय की दादी प्राचीन भारतीय दर्शन की एक बहुत अच्छी जानकार थी।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का बचपन इस तरह के वातावरण में होने की वजह से वे खुद भी तर्कशील (Rational) और स्वावलंबी (self-supporting) थी, जो उनके जीवन में आगे चलकर बहुत काम आया। कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने पहले मंगलोर और बाद लंदन यूनिवर्सिटी के बेडफ़ोर्ड कॉलेज से समाजशास्त्र विषय में डिप्लोमा हासिल किया। कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने भारत के प्राचीन पारम्परिक संस्कृत ड्रामा ‘कुटीयाअट्टम’ का अध्ययन भी किया।
जब कमलादेवी चट्टोपाध्याय 7 साल की थी, तब इनके पिता का देहांत हो गया था। इनकी पहली शादी सन् 1917 में इनके बचपन में 12 साल की उम्र में ही कर दी गई थी। इनके पहले पति का नाम ‘कृष्णा राव’ था। सन् 1919 में कृष्णा राव का देहांत हो गये था, इस वजह से कमलादेवी चट्टोपाध्याय अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही विधवा हो गई थी। सन् 1919 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने अपनी पसंद से सरोजिनी नायडू के छोटे भाई ‘हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय’ के साथ शादी की। इनके कई रिश्तेदारों ने इनका विरोध किया क्योंकि वे जात-पात में विश्वास रखते थे।
शादी के कुछ समय बाद कमलादेवी हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय के साथ लंदन चली गईं। हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय’ को भी कला, कविता, संगीत, और साहित्य में रूचि थी, मगर दोनों की विचारधाराऐं अलग होने की वजह से यह रिश्ता ज्यादा समय तक चल नहीं पाया और दोनों का तलाक हो गया। इन्होंने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम रामकृष्ण चट्टोपाध्याय था।
महिला आन्दोलन
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने ‘ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस’ की स्थापना की। वे बहुत बहादुर महिला थीं, वे पहली महिला थीं जिन्होंने 1920 के दशक में खुले राजनीतिक चुनाव में खड़े होने का फैसला लिया, वह भी ऐसे समय में जब ज्यादातर भारतीय महिलाओं को आजादी शब्द का मतलब भी नहीं पता था। कमलादेवी चट्टोपाध्याय उन कुछ महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने गाँधी जी के ‘नमक आंदोलन’ और ‘असहयोग आंदोलन’ में भी साथ दिया।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय पहली महिला थीं, जो नमक कानून को तोड़ने की वजह से बॉम्बे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार हुई। स्वतंत्रता आंदोलन के चलते कमलादेवी चट्टोपाध्याय को 4 बार जेल में डाला गया और लगभग 5 साल सलाखों के पीछे रहीं।
हस्तशिल्प तथा हथकरघा कला के क्षेत्र में योगदान
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने देश के अलग-अलग हिस्सों में फैली हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं की खोजकर इसे आगे बढ़ाने में बहुत कार्य किया। कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने हथकरघा और हस्तशिल्प को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया।
सन् 1952 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय की नियुक्ति ‘आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट’ के प्रमुख के तोर पर कर दी गई। कमलादेवी चट्टोपाध्याय कई इलाकों में घूमी, ताकि हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं को बचाया जा सके। इन्होंने भारत में बुनकरों के लिए जिस तरह से काम किया, उसका असर यह था कि जब ये गांवों में जाती थीं, तब हस्तशिल्पी, बुनकर, जुलाहे, सुनार अपने सिर से पगड़ी उतारकर इनके कदमों में रख देते थे। इस समुदायों के लोगों ने इनके माँ जैसे प्यार को देखकर इन्हें ‘हथकरघा माँ’ का नाम दिया।
संस्थानों की स्थापना
भारत के आज के समय में कई सांस्कृतिक संस्थान कमलादेवी चट्टोपाध्याय के पक्के इरादे और सोच का नतीजा हैं, जिनमे से कुछ हैं – संगीत नाटक अकेडमी, सेन्ट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, और क्राफ्ट कौंसिल ऑफ इंडिया। इन्होंने भारतीय जनता को सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित और मजबूत करने के लिए हस्तशिल्प और को-ओपरेटिव आंदोलनों को भी बढ़ावा दिया। इन्हें इस कार्य को आजादी से पहले और बाद में करने के लिए सरकार से संघर्ष करना पड़ा।
लेखन का कार्य
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने सन् 1939 में ‘द अवेकिंग ऑफ इंडियन वोमेन’, सन् 1943 में ‘जापान इट्स विकनेस एंड स्ट्रेन्थ’, सन् 1944 ‘अंकल सैम एम्पायर’, सन् 1944 ‘इन वार-टॉर्न चाइना’, और ‘टुवर्ड्स अ नेशनल थिएटर’ नाम की पुस्तक भी लिखीं, जो बहुत मशहूर हुईं।
पुरस्कार व सम्मान
- सन् 1955 में इन्हें भारत सरकार ने भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया।
- सन् 1987 में इन्हें भारत सरकार ने भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया।
- सन् 1966 में इन्हें समुदायों के नेतृत्व के लिए ‘रेमन मैग्सेसे’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- सन् 1974 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी ने ‘लाइफटाइम अचिवेमेंट’ पुरस्कार से सम्मानित किया।
- सन् 1977 में इन्हें हेंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने की वजह से यूनेस्को (UNESCO) द्वारा सम्मानित किया गया।
- शान्ति निकेतन ने इन्हें अपने सबसे बड़े सम्मान ‘देसिकोट्टम’ से सम्मानित किया।
मृत्यु
29 अक्टूबर सन् 1988 में मुंबई में कमलादेवी चट्टोपाध्याय का देहांत हो गया।