0 का अविष्कार किसने किया? 

शून्य गणित में पूर्णांक, वास्तविक संख्या या किसी अन्य बीजीय संरचना की योगात्मक पहचान मानी जाती है । और शून्य को Place Value System में place Holder की तरह भी प्रयोग किया जाता है । शून्य को अंग्रेजी में Nought (UK)  भी कहा जाता है । यदि सरल भाषा में समझे तो शून्य सबसे छोटी संख्या होती है जो कि No Negative संख्या होती पर इसका कोई मान नहीं होता है। आइए अब जानते हैं कि शून्य का आविष्कार किसने किया था ?

शून्य का आविष्कार – 

शून्य का आविष्कार होने से पहले पहले के गणितज्ञों को प्रश्नों को हल करने में बहुत परेशानी होती थी । कहां जाएं तो शून्य का आविष्कार होने से गणित के क्षेत्र में एक क्रांति सी आई थी । क्योंकि यदि शून्य का आविष्कार ना किया गया होता तो आज गणित जितना मुश्किल है उससे कई गुना और मुश्किल होता । और आज हम जिस शून्य को जानते हैं और जो भी शून्य के बारे में सटीक परिभाषा हमारे पास है उसके पीछे बहुत से गणितज्ञ और वैज्ञानिकों का योगदान रहा है । शून्य के अविष्कार का पूरा श्रेय ब्रह्मगुप्त को जाता है क्योंकि इन्होंने ही शुरुआत में शून्य को सिद्धांतों के साथ पेश किया था । ब्रह्मगुप्त के पहले  एक महान गणितज्ञ तथा ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था । इसलिए आर्यभट्ट को शून्य का जनक भी माना जाता है । शून्य के अविष्कार को लेकर शुरू में बहुत मतभेद भी हुए थे। क्योंकि गणना तो पहले भी की जाती थी पर बिना शून्य के गणना करना असम्भव सा था । पर ऐसा नहीं था कि लोग शून्य का प्रयोग बिना किसी सिद्धांत के उपयोग करते थे पर इसका कोई प्रतीक नहीं था । इसलिए ब्रह्मगुप्त ने शून्य को प्रतीक और सिद्धांतों के साथ इसे पेश किया और महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने इसका प्रयोग किया था । 

0 ka avishkaar kisne kiya

आर्यभट्ट का शून्य के अविष्कार में क्या योगदान रहा – 

आर्यभट्ट ने ही शून्य का आविष्कार किया था । आर्यभट्ट ही ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शून्य की अवधारणा दी थी । आर्यभट्ट मानना था कि एक ऐसा अंक होना जरूरी है जो दस अंकों के प्रतीक के रूप दस का प्रतिनिधित्व कर सके और जिसका कोई मान ना हो । 

शून्य का आविष्कार कैसे हुआ ? 

शून्य का आविष्कार बहुत पहले से की प्रतीको के स्थानांतरण के रूप में किया जाता था ऐसे में यह बता पाना मुश्किल है कि शून्य का आविष्कार कब हुआ पर हां 628 ईसवी में एक महान भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य का प्रतीको और सिद्धांतों के साथ एक सटीक रूप से प्रयोग किया था । 

शून्य का क्या इतिहास है ?

ब्रह्मगुप्त के शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का प्रयोग तो किया जाता था ।की प्राचीन मंदिरों के पुरात्वो और ग्रंथों में यह देखा गया है । इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि शून्य का प्रयोग कब से हो रहा है पर हां यह तो निश्चित है कि यह है भारत की देन । आज से कुछ सालों जब एक देश से दूसरे देश में जाना मुश्किल था तब संचार के साधन भी नहीं थे । यानी देश के एक कोने में बैठे व्यक्ति तो यह भी पता नहीं होता था कि देश के दूसरे कोने में भी कोई होगा । सभी लोग अपने अपने हिसाब से रहते थे । तथा गणना तो हर सभ्यता में पहले भी की जाती थी पर  संख्याओं के प्रतीक सबके अलग अलग होते थे । और शुरुआत में शून्य एक मात्र स्थानधारक होता था लेकिन बाद में यही शून्य गणित का एक अहम हिस्सा बन गया । कहा जाता है कि शून्य का Concept है तो काफी पुराना पर 5वी शताब्दी तक पूरी तरह से विकसित नहीं था । गणना प्रणाली की शुरुआत करने वाले सबसे पहले लोग सुमेर के निवासी थे । और बेबीलोन की सभ्यता के द्वारा उनसे इस गणना प्रणाली को स्वीकार किया गया था तथा यह गणना प्रणाली प्रतीकों पर ही आधारित होती थी । शून्य का आविष्कार हुआ था जब बेबीलोन की सभ्यता ने कुछ प्रतीकों का उपयोग स्थानधारक के रूप में किया था । तब शून्य का उपयोग सिर्फ स्थानधारक 10 और 100 के बीच में अंतर बताने के लिए ही होता था। 

बेबीलोन की सभ्यता के बाद शून्य का उपयोग मायानो ने एक Place Holder के रूप में किया था तथा उन्होंने पंचांग प्रणाली के निर्माण में भी शून्य का उपयोग किया था । पर पहले शून्य का उपयोग कभी भी गणना कार्य के लिए नहीं किया गया था । इसके बाद आता है भारत का नाम जहां आज तक शून्य का उपयोग गणना करने के लिए किया जाता है ।