प्लासी का युद्ध
प्लासी का युद्ध | |
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तिथि | 17 जून 1757 |
स्थान | प्लासी, बंगाल, भारत |
परिणाम | कंपनी को बंगाल की राजनितिक बागडोर प्राप्त हो हुई |

प्लासी का युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच 17 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के नदिया जिले में गंगा नदी के पास प्लासी नामक स्थान पर लड़ा गया। प्लासी का युद्ध एकमात्र षडयंत्र और विश्वासघात का प्रदर्शन था, इतिहासकार इसे युद्ध नहीं मानते परत्नु उनके अनुसार इस युद्ध से काफी महत्वपूर्ण परिणाम निकले, क्योंकि इस युद्ध के उपरांत भारतीय इतिहास की धारा में एक महान परिवर्तन हुआ, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा निर्मित व्यापारिक संस्था ने बंगाल की राजनितिक लगाम अपने हाथ में कर ली। इस युद्ध के उपरांत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को आर्थिक रूप से बहुत फायदा हुआ, जिससे उनकी नीव आर्थिक रूप से काफी मजबूत हो गई।
युद्ध
बंगाल के नवाब औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात उनकी तीन पुत्रियों में से तीसरी पत्री के बेटे सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। पुरानी परंपरा के अनुसार जब कोई नवाब बनता, तब उसके अधीन सभी राज्यों के राजा, विदेशी प्रतिनिधि और बाकि अन्य सभी लोग जो उसके अधीन होते, उन्हें दरबार में सम्मलित होना पड़ता था। जब सिराजुद्दौला को नवाब के पद पर बैठाया गया, तब उस वक्त उसके दरबार में अंग्रेजों के प्रतिनिधि सम्मलित नहीं हुए, क्योंकि वे सिराजुद्दौला को अपना नवाब मानने से इनकार करते थे, जिसके चलते संगर्ष बढ़ा। दूसरी तरफ औरंगजेब की दूसरी पत्री का बेटा शौकतगंज भी बंगाल का नवाब बनना चाहता था। जब सिराजुद्दौला को बंगाल के नवाब की गद्दी पर आसीन किया गया, तब उन्हें शौकतगंज के द्वारा काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, इसलिए सिराजुद्दौला ने सर्वप्रथम यह निर्णय किया कि वह पहले इस आन्तरिक संगर्ष का समाधान करेंगे क्योंकि इस संगर्ष के चलते अंग्रेजों का राजनीती में दखल करना बढ़ता जा रहा था। अत: इस संगर्ष को खत्म करने के लिए सिराजुद्दौला ने योजना बनाकर शौकतगंज की हत्या करवा दी और अंग्रेजों को खत्म करने का निश्चय किया।
मुगल सम्राट द्वारा अंग्रेजों को निशुल्क सामुद्रिक व्यापार करने की छूट मिली थी, जिसका अंग्रेजों ने दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने निजी व्यापार को भी नि:शुल्क करना प्रारंभ किया और देशी व्यापरियों को भी “कर (Tax)” न देने के लिए प्रोत्साहित करने लगे, जिससे नवाब को आर्थिक रूप से हानि होने लगी। जब सिराजुद्दौला ने व्यापारिक सुविधायों को बंद करने का निर्णय किया, तो अंग्रेज बगावत करने लगे। उसी दौरान इंगलैण्ड और फ्रांस के बीच युद्ध शुरू होने वाला था, जिसके चलते अंग्रेजों को भी अपने साथ युद्ध होने की आशंका होने लगी, इसलिए उन्होंने खुद को मजबूत करने के लिए किले की बंदी करना शुरू कर दिया। जब नवाब को यह बात पता चली, तब उन्होंने किलेबंदी को रोकने का तुरंत आदेश दिया, परन्तु अंग्रेजों ने उनके आदेश को अनदेखा करते हुए अपना कार्य जारी रखा। नवाब के आदेश की अवहेलना होने के कारण वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने 4 जून सन. 1756 को कासिमबाजार पर आक्रमण करके उसको जीत लिया। तत्पश्चात उन्होंने कलकत्ता के फोर्ट विलिय से युद्ध करके उसे भी जीत लिया। इस युद्ध में नवाब ने अंग्रेजों के 146 सैनिकों को गिरफ्तार किया और उनको करीब 18 फिट लम्बी और 10-14 फिट की चौड़ाई की काल कोठरी में बंद कर दिया गया। उन दिनों अधिक गर्मी होने के कारण 123 कैदियों की काल कोठरी में दम घुटने के कारण मृत्यु हो गई (यह घटना काली कोठरी के नाम से प्रचलित है) और शेष बचे कैदियों में हाँवेल नाम का एक अंग्रेज सैनिक भी था, जब उसके द्वारा इस घटना का अंग्रेजों को पता चला, तब अंग्रेजों का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने नवाब के विरुद्ध युद्ध करने की तैयारी शुरू कर दी। युद्ध की तैयारी पूर्ण होने के बाद अंग्रेजों ने कलकत्ता के किले पर आक्रमण किया। उस वक्त कलकत्ता के लिए नवाब ने मानिकचंद को चुना था जो अंग्रेजों का मित्र था, जिसके कारण अंग्रेजों ने सहज ही कलकत्ता को नवाब से मुक्त कर दिया। 9 फरवरी सन. 1757 को हुई एक संधि के तहत अंग्रेजों ने पुन: कलकत्ता से सभी तरह के व्यवाहरिक अधिकार पा लिए। अपने कदमों को बढ़ाते हुए अंग्रेजों ने चंद नगर पर आक्रमण किया और उसको अपने आधीन कर लिया जिससे नवाब बहुत क्रोधित हुए क्योंकि फ्रांसिसी और सिराजुद्दौला के सम्बन्ध मैत्री के थे। उसी दौरान अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को खत्म करने की योजना बनाई। अंग्रेजों ने रायदुर्लभ, मीरजाफर और जगत सेवक जैसे नवाब के लोगों को अपनी तरफ कर लिया। जिसमें नवाब के प्रधान सेनापति मीरजाफर को राज्य देने का प्रलोभन दिया जो मीरजाफर का सपना था। मीरजाफर की नजर बंगाल की गद्दी पर ही टिकी थी इसलिए जब अंग्रेजों द्वारा यह अवसर जाफर को मिला तो वह अपने राजा को धोखा देने के लिए तैयार हो गया। तत्पश्चात अंग्रेजों ने नवाब पर अली नगर की संधि को तोड़ने का आरोप लगाकर 22 जुन सन. 1757 को नवाब पर आक्रमण कर दिया। नवाब के प्रमुख लोगों को अंग्रेजों ने पहले ही अपनी तरफ कर लिया था, फलस्वरूप सिराजुद्दौला प्लासी के युद्ध में बुरी तरह हार गया और मीर जाफर ने अंग्रेजों के साथ मिलकर नवाब की हत्या कर दी। उसके उपरांत अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का राजा बनाया, परन्तु जाफर अयोग्य व्यक्ति था जिसका लाभ उठाते हुए अंग्रेज वास्तविक रूप से बंगाल के असली शाशक बन गए।
जाफर ने ईस्ट इंडिया कंपनी को 1 करोड़ 17 लाख रूपए दिए जिससे कंपनी की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई। कंपनी के मठ कर्मचारीयों को साढ़े 12 लाख रूपए प्राप्त हुए, रोबर्ट क्लाइव को 24 हजार और अंग्रेजों को स्वतंत्रता पूर्ण दौबारा अपना व्यापारिक अधिकार प्राप्त हो गया, जिससे उन्होंने 15 करोड़ रुपयों का मुनाफा उठाया और जाफर ने कंपनी को तिन करोड़ रूपए घूस के रूप में भी दिए। इस प्रकार अंग्रेजों के साम्राज्य की नीव डाली गई और बंगाल पर अंग्रेजों का राजनितिक दौर प्रारंभ हुआ।