पंजाबी भाषा भारत के पंजाब प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है और यह भाषा हिन्द-आर्य परिवार की है। इस भाषा को सिख, मुसलमान और हिंदू सभी बोलते हैं। 1998 में हुई पाकिस्तान की जनगणना और 2001 में हुई भारत की जनगणना के अनुसार दोनों देशों में कुल 9 करोड़ से 13 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो पंजाबी बोलते और समझते हैं। पंजाबी भाषा पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 11वे नंबर पर आती है। पिछले 300 सालों से पंजाबी भाषा के लिखित रूप का मानक रूप, ‘माझी’ बोली पर आधारित है, असल में ‘माझी’ भाषा ऐतिहासिक क्षेत्र ‘माझा’ की भाषा है।
परिचय
पंजाबी भाषा पंजाब की आधुनिक भारतीय-आर्य भाषा है। ग्रियर्सन विभाग ने पश्चिमी पंजाबी को ‘लहँब्रा’ और पूर्वी पंजाबी को ‘पंजाबी’ कहा है। असल में पंजाबी की 2 उपभाषाएँ ‘पूर्वी पंजाबी’ और ‘पश्चिमी पंजाबी’ हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह हिंदी की 2 उपभाषाएँ ‘पूर्वी हिंदी’ और ‘पश्चिमी हिंदी’ हैं। परंतु अब पाकिस्तान के बनने के बाद से दोनों पंजाबी भाषाएँ बिल्कुल अलग-अलग तरह से विकसित हो रही हैं और इसी वजह से दोनों भाषाओं के अलग-अलग भाषा हो जाने की संभावना बहुत ज्यादा है। पंजाब की एक और उपभाषा है जिसका नाम “डोगरी” है। डोगरी भाषा जम्मू और कश्मीर के दक्षिण भाग और काँगड़ा (हिमाचल) में बोली जाती है।
सिक्खों का सबसे बड़ा धार्मिक तीर्थ और केंद्र अमृतसर है। ईसाई मिशनरी के लोगों ने लुधियाना-पटियाला की ‘मलवई’ बोली को ‘टंकसाली’ बनाने की कोशिश की थी। इसकी वजह से मलवई का प्रभाव सर्वत्र व्याप्त हो गया, मगर अच्छी साहित्य भाषा के रूप में ‘माझी’ ही सबसे ज्यादा मानी हुई भाषा रही है। पश्चिमी पंजाब की बोलियों की बात की जाए, तो उनमें मुलतानी, डेरावाली, अवाणकारी और पोठोहारी हैं और अगर पूर्वी पंजाब की बोलियों की बात की जाए तो उनमें पहाड़ी, माझी, दूआबी, पुआधी, मलवई और राठी बहुत प्रसिद्ध बोलियाँ हैं। माना जाता है कि रावी नदी ही पश्चिमी पंजाबी और पूर्वी पंजाबी को अलग-अलग हिस्सों में बांटती है।
पंजाबी नाम बहुत पुराना माना जाता है। असल में यह शब्द 2 फारसी शब्दों “पंज” और “आब” से मिलकर बना है। “पंज” का मतलब “पांच” और “आब” का मतलब “पानी” होता है। पंजाब का प्राचीन नाम ‘सप्तसिंधु’ है। सबसे पहले भाषा के लिए पंजाबी शब्द का प्रयोग ‘हाफिज़ बरखुदार’ (जो एक कवि थे) के द्वारा 1670 ई. में किया गया था। मगर इसका साधारण नाम बाद में भी “हिंदी” या “हिंदवी” रहा है, रणजीत सिंह के दरबारी कवि ‘हाशिम महाराज’ भी अपनी पंजाबी भाषा को हिंदी कहते थे। 19वी सदी के अंत तक हिंदुओं और सिक्खों की भाषाओं का झुकाव ब्रजभाषा की ओर होने लगा था। हिंदी और पंजाबी दोनों की खड़ी बोलियों में भी बहुत अंतर देखाई देता है।